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पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक सुनील कुमार ने किया मेले में आर्ट गैलरी का अवलोकन

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सूरजकुंड (फरीदाबाद), 13 फरवरी। कला के क्षेत्र में महारत हासिल कर रही जयपुर की प्रसिद्ध लघु चित्रकार सावित्री शर्मा इन दिनों सूरजकुंड मेला परिसर में चल रही छह दिवसीय लघु चित्रकला कार्यशाला में अपनी अनूठी कला का सराहनीय प्रदर्शन कर रही हैं। इस कार्यशाला में देशभर से आए कलाकार अपनी-अपनी चित्रकला शैलियों को प्रस्तुत कर रहे हैं, लेकिन सावित्री शर्मा की कला और उनकी चित्रकारी की बारीकिया पर्यटकों का बरबस ही ध्यान आकर्षित कर रही हैं। 

गुरूवार को पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक सुनील कुमार ने आर्ट गैलरी में प्रदर्शित की गई विभिन्न चित्रकलाओं का अवलोकन किया। इस दौरान उन्होंने यहां प्रदर्शित की गई सभी चित्रकलाओं की प्रशंसा करते हुए चित्रकारों की सराहना की।  

उन्होंने कहा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पर्यटन मंत्री डा.अरविंद शर्मा के मार्गदर्शन में आयोजित किया जा रहा सूरजकुंड शिल्प मेला कलाकारों को बेहतर मंच प्रदान कर रहा है। सूरजकुंड मेले में विभिन्न मंचों के माध्यम से युवाओं को आगे बढऩे और उनकी प्रतिभा निखारने का अवसर प्रदान किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि कला एवं सांस्कृतिक विभाग हरियाणा और पर्यटन निगम के संयुक्त तत्वावधान में 14 फरवरी तक लघु चित्रकला कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। कार्यशाला में चित्रकार सावित्री शर्मा द्वारा बनाए जा रहे चित्रों में भारतीय शास्त्रीय संगीत की अनूठी परंपरा को दर्शाया गया है। विशेष रूप से उनका एक चित्र ‘राग-रागिनी’ की परिकल्पना पर आधारित है, जिसमें संगीत और कला का समन्वय खूबसूरती से झलकता है। 

सावित्री शर्मा का यह चित्र केवल सौंदर्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसमें एक गहरा संदेश भी छिपा है। यह चित्र भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और उसे आधुनिक युग के कला प्रेमियों तक पहुंचाने का एक प्रयास है।

सावित्री शर्मा की चित्रकला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे प्राकृतिक रंगों का उपयोग करती हैं। इस चित्र को बनाने में पारंपरिक विधियों का पालन किया गया है, जिससे यह न केवल सुंदर बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है।

लघु चित्र बनाने में हो रहा खडिय़ा व चाक का उपयोग - 

उन्होंने बताया कि इस चित्र को बनाने के लिए खडिय़ा (चाक) का उपयोग किया गया है। खडिय़ा का उपयोग लघु चित्रकला में प्राचीन काल से किया जाता रहा है और इसे तैयार करने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और धैर्यपूर्ण होती है।

उन्होंने विस्तार से समझाया कि खडिय़ा को पहले तीन दिनों तक पानी में धोकर शुद्ध किया जाता है, ताकि उसकी अशुद्धियां समाप्त हो जाएं और वह एक बेहतर रंग के रूप में परिवर्तित हो सके। इसके बाद, इसे धूप में अच्छी तरह सुखाया जाता है और फिर बबूल की गोंद में मिलाकर एक प्राकृतिक रंग तैयार किया जाता है। 

यह गोंद रंग को स्थायित्व प्रदान करती है और उसे लंबे समय तक टिकाऊ बनाती है। इस पारंपरिक पद्धति से तैयार रंग चित्र को एक विशिष्ट चमक और पारंपरिक सौंदर्य प्रदान करते हैं, जो आधुनिक सिंथेटिक रंगों से संभव नहीं होता।

इस कार्यशाला में सावित्री शर्मा की भागीदारी यह दर्शाती है कि पारंपरिक भारतीय कला अभी भी जीवंत है और इसे संरक्षित करने की दिशा में गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। उनका यह प्रयास आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणादायक है और भारतीय कला को वैश्विक मंच पर ले जाने में सहायक साबित होगा। 

दूसरी ओर लघु चित्रकला कार्यशाला में मौजूद कला एवं संस्कृति अधिकारी रेणु हुड्डा ने बताया कि कार्यशाला के अंतिम दिन अर्थात 14 फरवरी को प्रतिभाशाली कलाकारों द्वारा बनाई गई अद्भुत कृतियों का प्रदर्शन होगा। यह प्रदर्शनी, कला के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक अनोखा अवसर होगी, जहां वे विभिन्न कलाकारों की प्रतिभा को एक साथ देख सकते हैं। यह प्रदर्शनी, कला के प्रति उत्साही लोगों, कलाकारों और कला के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिए एक अद्वितीय अनुभव होगा।

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