इस कार्यशाला की मुख्य अतिथि डीसीपी सेंट्रल उषा कुंडू थीं, जिनके साथ एसीपी ने भी अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराई।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य "प्रारंभिक न्याय तक पहुंच योजना" के तहत गिरफ्तारी से पहले और बाद में कानूनी सहायता के प्रावधानों को बेहतर तरीके से लागू करने के लिए पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित और जागरूक करना था। योजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी हो और वे न्याय तक शीघ्र पहुंच प्राप्त कर सकें।
कार्यशाला के प्रमुख बिंदु :
गिरफ्तारी से पहले कानूनी सहायता के प्रावधान, पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के पूर्व आरोपी को धारा 41A (सीआरपीसी) के तहत नोटिस जारी करना।
आरोपी को अग्रिम जमानत (धारा 438 सीआरपीसी) का अधिकार समझाना।
गिरफ्तारी से पहले कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) की भूमिका पर चर्चा।
गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता के प्रावधान, पुलिस और विधिक सेवा प्राधिकरण के बीच समन्वय
नागरिकों को न्याय तक शीघ्र पहुंच सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और विधिक सेवा प्राधिकरण के बीच समन्वय बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर।
पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित करना कि वे जरूरतमंदों को कानूनी सहायता योजनाओं के बारे में जानकारी दें।
इस योजना के तहत समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को प्राथमिकता देना।
डीसीपी सेंट्रल उषा कुंडू ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करते हुए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करें। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला कानून और न्याय प्रणाली के बीच बेहतर तालमेल बनाने में सहायक होगी।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सह सचिव रीतु यादव ने कहा कि प्रारंभिक न्याय तक पहुंच योजना का उद्देश्य समाज के प्रत्येक नागरिक को न्याय का अवसर प्रदान करना है, चाहे वह आर्थिक, सामाजिक या किसी भी तरह की असमानता का सामना कर रहा हो।
मुख्य विधिक सहायता रक्षा वकील रविंद्र गुप्ता ने कानूनी सहायता की प्रक्रियाओं और उसकी प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे आरोपी के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है और उन्हें न्याय तक शीघ्र पहुंचाया जा सकता है। यह कार्यशाला पुलिस अधिकारियों और विधिक सेवा प्राधिकरण के बीच समन्वय स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था।
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