उन्होंने लक्ष्मण को कहा कि तुमने मुझे अपना पूरा जीवन दिया, लेकिन हनुमान अभी नया है। इसे मैं इसलिए ज्यादा प्यार करता हूं। इसके साथ साथ वह सेवा को ही सबकुछ मानता है, इसलिए वह परम बड़भागी है। श्रीराम ने कहा कि सेवा करने में जो अधिकार चाहता है वह मोहित हो जाता है और सेवा के असली अर्थ को भूल जाता है। इसलिए सेवा करने वाले को कभी भी अधिकार, पद की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवक के मन में मान सम्मान प्रतिष्ठा और सुख की चाहना अपराध है। उन्होंने हनुमान को सेवा और भक्ति का पर्याय बताया।
उन्होंने सभी के लिए हनुमान जी से बल, बुद्धि और कृपा की प्रार्थना की। स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने कहा कि हनुमान वास्तव में गुरु हैं। उन्हें गोस्वामी तुलसीदास गुरु बताते हैं और गुरु के रूप में ही अपनी कृपा करने के लिए कहते हैं। इसलिए जब भी हम बात करते हैं, तब हनुमानजी को गुरु के रूप में ही मानते हैं। इससे पहले स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने वीर हनुमान की मूर्ति का भव्य अभिषेक किया और हजारों लोगों को आशीर्वाद एवं प्रसाद भी प्रदान किया।
इस अवसर पर सैकड़ों महिलाओं ने अपने सिर पर मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में भागीदारी की, वहीं सैकड़ों कार्यकर्ता धर्म ध्वजा लेकर चल रहे थे। जिसमें एक विशाल बग्गी में हनुमानजी मूर्त रूप में बैठे हुए थे। इस आयोजन में श्री सिद्धदाता आश्रम संचालन समिति, विभिन्न सेवा समितियों के कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
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