जयहिंद ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि असली फूफा 104 वर्षीय दादी दुलीचंद है जिन्होंने 2 साल पहले"थारा फूफा जिंदा है" कि मुहिम चलाई थी और प्रदेश के लाखों बुजुर्गों, दिव्यांग और विधवाओं की पेंशन बनवाई। सरकारी कागजों में सरकार ने इन्हें मरा हुआ दिखाया था और इसी को लेकर तब इन्होंने संघर्ष किया था और यह अभियान चलाया।
उहोने जज के सामने यही बात रखी कि पूरी दुनिया में सबसे पहले "थारा फूफा जिन्दा है" की मुहीम दादा दुलीचंद के साथ उन्होंने चलाई थी | इस एप ने व्यवसायिक तौर पर ये शब्द इस्तेमाल किये है | अगर वे गलत साबित होते है तो कोर्ट चाहे तो बेशक नवीन जयहिंद पर जुर्माना लगा दे |
जयहिंद ने कहा कि हमें इस से एप कोई पैसा नहीं चाहिए | हमारी एक ही अपील ही कि ये एप जितना भी पैसा कमाए उसे वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम और गौशाला में दान दे |साथ ही दादा दुलीचंद से माफ़ी मांगे | उन्होंने पहले एप को समय दिया था माफ़ी मांगने और नाम बदलने के लिए लेकिन एप की तरफ से कोई जवाब न आने की वजह से उन्हें ये कदम उठाना पड़ा | इस तरह से कंटेंट चोरी करना आज के युग में पाप से कम नहीं है | अब ये लड़ाई मान -सम्मान की है पैसे की नहीं| दादा दुलीचंद के साथ अगर सुप्रीम कोर्ट तक भी जाना पड़े तो वे पीछे नहीं हटेंगे संघर्ष जरुर करेंगे |
इस मौके पर एडवोकेट गौरव भारती, एडवोकेट मदनलाल मोजूद रहे |
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