इन हुक्का बार में विभिन्न फ्लेवर/जड़ी-बूटियों का भी इस्तेमाल किया जाता है। कई बार तो इन हुक्का बारों में फ्लेवर/जड़ी-बूटी परोसने की आड़ में निकोटिन और प्रतिबंधित दवाएं भी परोसी जाती हैं। इस हुक्का में जल पाइप प्रणाली और फ्लेवरयुक्त घटक शीशा शामिल है, जिसे चारकोल के साथ गर्म किया जाता है।
किशोरों और युवा वयस्कों के बीच इस स्वाद वाले हुक्के की लोकप्रियता हाल के दिनों में काफी बढ़ गई है। कई तरह के स्वादों की उपलब्धता, धुएं की कम तीव्रता, निकोटीन का न होना या कम होना और महत्वपूर्ण रूप से इसके उपयोग से जुड़े जोखिम का कम या न होना जैसी विभिन्न भ्रांतियों के कारण इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इन उत्पादों के प्रभावों में हृदय रोग, फेफड़ों के रोग और कैंसर शामिल हैं। सिगरेट की तरह हुक्का के धुएं से सिलिअरी क्षति हो सकती है। हुक्का बार में पाई जाने वाली हवा की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण स्तर के पार्टिकुलेट मैटर के साथ खतरनाक होती है, जो क्रोनिक ब्रोंकाइटिस या अस्थमा के खतरे को बढ़ा सकती है।
जिलाधीश नेहा सिंह ने बताया कि इसके अलावा हुक्के की नली में 48 बैक्टीरियल आइसोलेट्स भी पाए जाते हैं। इससे कई अन्य प्रकार की संचारी बीमारियां भी फैलती हैं, जिससे उन उपयोगकर्ताओं के स्वास्थ्य और जीवन को खतरा पैदा होता है जो आम हुक्का के उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में नहीं जानते हैं। इसलिए बड़े पैमाने पर जनता के सामान्य स्वास्थ्य और कल्याण के लिए इन गतिविधि की तत्काल रोकथाम आवश्यक है।
सरकार से प्राप्त निर्देशों की अनुपालना में जिलाधीश नेहा सिंह ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा-144 में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए हुक्का बार और होटल/रेस्तरां/सराय/बार/किसी भी अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान में जहां लोग इक_ा होते हैं, धूम्रपान/उपभोग के लिए कोई हुक्का/नार्घिल परोसने पर प्रतिबंध लगाया है।
यह प्रतिबंध जिला पलवल में गैर-वाणिज्यिक और व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक हुक्का पर लागू नहीं होगा। इन आदेशों का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति धारा-188 के तहत दंड का भागी होगा।
Post A Comment:
0 comments: