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फ़रीदाबाद नगर निगम की नई वार्डबंदी के ख़िलाफ़ पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दर्ज़

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फरीदाबाद नगर निगम की हाल ही में हुई वार्डबंदी को सामाजिक संगठन सेव फरीदाबाद के सदस्यों ने वरिष्ठ अधिवक्ता दीप करण दलाल के माध्यम से पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय में फिर से चुनौती दे दी है। 

मामले का संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति राज मोहन सिंह व न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह की डबल बेंच ने हरियाणा सरकार से जवाब तलब किया है। इस बार मुख्य रूप से परिवार पहचान पत्र को जनगणना का आधार बनाने और अन्य पिछड़ा वर्ग (ऐ) को जनसँख्या के आधार पर व  अन्य पिछड़ा वर्ग (बी) को निगम चुनाव में आरक्षण ना देने पर उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की गयी है। 

सेव फरीदाबाद संस्था के अध्यक्ष पारस भारद्वाज व संजय कॉलोनी निवासी याचिकाकर्ता शिवम शर्मा का कहना है कि परिवार पहचान पत्र को जनसँख्या का आधार बनाकर हरियाणा सरकार बड़ी सफाई से आम जनता की आँखों में धूल झोंकने का काम कर रही है। वार्डबंदी का आधार ही जनसँख्या होता है और यदि आधार ही त्रुटिपूर्ण हो तो सम्पूर्ण प्रक्रिया का कोई औचित्य नहीं रहता। परिवार पहचान पत्र में आये दिन हास्यास्पद त्रुटियों का खुलासा होता रहता है जिससे आम जनता भी अनभिज्ञ नहीं है। 

दीप करण दलाल का कहना है कि परिवार पहचान पत्र का उपयोग केवल सरकारी सुविधाओं को मुहैय्या करवाने के लिए किया जा सकता है और वार्डबंदी के लिए विशेष जनगणना का प्रावधान है जो कि जिला उपायुक्त द्वारा नियुक्त अधिकारी घर घर जाकर करते हैं। परन्तु हरियाणा सरकार परिवार पहचान पत्र को जनगणना के स्थान पर उपयोग में लाने को इतनी आमादा है कि विधानसभा सत्र से पहले ही राज्यपाल का विशेष अध्यादेश लाकर परिवार पहचान पत्र के डाटा को निगम में इस्तेमाल करने को लेकर कानूनी स्वीकृति दिलवा दी जो कि सरासर गलत है। गौरतलब है कि यशी कंसल्टिंग व डीमआरके इंफोकैड कंपनी द्वारा 3 करोड़ रुपये की मोटी रकम देकर हरियाणा सरकार एक बार वार्डबंदी के लिए जनगणना करवा चुकी है परन्तु उस जनगणना में भी बहुत ज़्यादा खामियां पाई गयीं। पारस भारद्वाज इस बाबत पहले ही सरकार पर जनगणना घोटाला करने का आरोप लगा चुके हैं व पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के माध्यम से  सरकार से जवाब भी मांग चुके हैं। 

दीप करण दलाल ने डिवीज़न बेंच  के समक्ष दलील दी कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशानुसार अन्य पिछड़ा वर्ग को चुनाव में आरक्षण उनका पिछड़ापन देख कर किया जाएगा ना कि केवल जनसँख्या देख कर। इसके विपरीत हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को दरकिनार करते हुए केवल संख्या के आधार पर ही आरक्षण तय कर दिया है जो कि याचिकाकर्ताओं की प्रमुख आपत्ति है।

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