नई दिल्ली/ चंडीगढ़/ फरीदाबाद- 31 जुलाई को नूह सहित आस पास के जिलों में हिंसा हुआ और ताजा जानकारी के मुताबिक़ नूह में अभी कर्फ्यू जारी है। कई जिलों में इंटरनेट बहाल कर दिया गया है। अब तक 37 मकान ढहाए जा चुके हैं जिनमे सहारा होटल भी है। नूह के एसपी का कहना है कि जिन मकानों से पत्थर फेंके गए हैं उन पर ऐक्शन जारी रहेगा। कल कर्फ्यू में थोड़ी ढील दी जा सकती है। इस हिंसा को लेकर प्रदेश की राजनीति भी गर्म है। कई पार्टियों के नेता फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। हिंसा के लगभग दो दिन तक सीएम खट्टर को जमकर घेरा जा रहा था और प्रदेश में भाजपा का ग्राफ और गिरता जा रहा था। लोगों की मांग थी कि योगी जैसी कार्यवाही करें हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और फिर वही हुआ। पहले रोहिंग्याओं की झुग्गियां तोड़ी गईं फिर पत्थरबाजों के मकानों पर बुलडोजर चलने लगा और फिर सीएम खट्टर की छवि में अचानक बदलाव देखने को मिला।
कई भाजपा नेताओं ने एक कांग्रेसी विधायक को हिंसा का जिम्मेदार बताया जबकि कांग्रेस के दिग्गज नेता सीएम खट्टर को घेरते रहे और शांति और भाईचारे की अपील करते रहे लेकिन कुछ कांग्रेसी नेता सत्ताधारियों के जाल में फंस गए और यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के चीफ अखिलेश यादव जैसे बयानबाजी करने लगे जिसका फायदा हरियाणा को मिलने लगा और माहौल अल्प संख्यक और बहुसंख्यक बनने लगा। भाजपा को इसी संजीवनी बूटी का इन्तजार था और वो मिलने लगी क्यू कि तमाम बड़े सर्वे में और राजनीति के जानकार सीएम खट्टर को कमजोर मुख्यमंत्री बताते हुए अगले चुनावों में भाजपा को 20 से कम सीटें दे रहे थे और कांग्रेस की भारी बहुमत से सरकार बनती दिखा रहे थे।
अब उन्ही राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा फायदे में है और अब कांग्रेस को नुक्सान हो रहा है क्यू कि कांग्रेस ने अखिलेश यादव से कुछ नहीं सीखा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान जिन्होंने प्रदेश की कमान सँभालने के बाद अब तक कुछ ख़ास नहीं किया है। उनकी बयानबाजी भी कांग्रेस पर भारी पड़ने लगी है। प्रदेश में कांग्रेस की हवा अच्छी थी लेकिन इसी वजह से कुछ कांग्रेसी घमंडी भी होते चले गए इसका नुक्सान भी कांग्रेस को होने लगा है। कांग्रेसियों की रैलियों में भारी भीड़ होती है जिसका घमंड भी कांग्रेस को है लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि 2014 चुनावों से पहले तत्काल सीएम भूपेंद्र हुड्डा की गोहाना रैली में 7 लाख के आस पास लोग पहुंचे थे लेकिन भीड़ हुड्डा को कुर्सी तक नहीं पहुंचा सकी। एक समय में हार्दिक पटेल ने को 10 लाख से ऊपर की भीड़ जुटा ली लेकिन आगे कुछ नहीं कर सके , अब भाजपा में आकर मात्र भाजपा के विधायक हैं , बिहार चुनावों में तेजस्वी यादव की रैलियों में भारी भीड़ लेकिन खास सफलता नहीं मिली थी।
मेवात की बात करें तो कई वर्षों से पुलिस के आला अधिकारी ये कहते देखे गए हैं कि झारखंड से किसी मामले के आरोपी पकड़ना आसान है लेकिन मेवात से नहीं। किसी अपराध के बाद पुलिस की भारी भरकम टीम जाती थी तभी आरोपी पकडे जाते थे वरना पुलिस पर ही हमला हो जाता था जिससे पता चलता है कि जिन आरोपियों के घरों को ध्वश्त किया जा रहा है वो दूध के धुले नहीं हैं। हो सकता है आग की चपेट में कोई बेगुनाह भी आ गया हो क्यू कि आग जाति धर्म दोष निर्दोष नहीं देखती।
हरियाणा में इस समय सीएम का अलग बयान, उप मुख्यमंत्री का अलग बयान और गृह मंत्री कहते हैं उन्हें कुछ पता ही नहीं है। प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इन मुद्दों को भुनाने के बजाय पत्थरबाजों का बचाव करती दिख रही है जिससे उसका नुक्सान हो रहा है। फरीदाबाद, गुरुग्राम, पलवल, रेवाड़ी, झज्जर और पानीपत और सोनीपत जिलों तक में कांग्रेस कमजोर होने लगी है।
आने वाले दिनों में भी खट्टर का बुलडोजर चलते रहने की उम्मीद है और कांग्रेस बुलडोजर के आगे आई तो और कमजोर हो सकती है। कांग्रेस ने पीएम मोदी से भी कुछ नहीं सीखा, तीन महीने से मणिपुर में लगातार हिंसा जारी है, 24 घंटों में ही 6 लोगों की मौत हो चुकी है और डेढ़ सौ से ज्यादा मौतें हुईं। भाजपा विधायकों पर हमला,उनके घर जला दिए गए। तमाम जवान भी शहीद जबकि वहाँ भी इंजन की सरकार है। हरियाणा में भी डबल इंजन की सरकार है। मेवात हिंसा को 7 दिन हो गए और लगभग 7 लोगों की मौत और मृतकों में पुलिसकर्मी भी लेकिन पीएम जैसे मणिपुर पर खामोश हैं वैसे मेवात पर जबकि मेवात तो दिल्ली के करीब है। कोई न कोई खास बात होगी इस खामोशी की लेकिन हरियाणा कांग्रेस समझ नहीं पा रही है। दो समुदाय के लोगों से हरियाणा की जंग शायद ही कांग्रेस जीत पाए।
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