फरीदाबाद- कोट गांव के आस पास के पहाड़ों पर हजारों वर्ष पुराने औजारों का मिलना जारी है। शोधकर्ता तेजवीर मावी ने अब 50,000 वर्षों पुराना हाथ की नक्काशी और पैरों के निशान खोजे हैं।
तेजवीर मावी का कहना है कि ये औज़ार पाषाण युग के है यानी कि पुराणा काल पत्थर का काल जब मानव पत्थर के औजारों पर निर्धारित था आदिमानव पत्थर के औजारों से ही शिकार किया करते थे पत्थर के औजारों से पशुओं का शिकार करता था। शिकार से प्राप्त माँस ही उसका मुख्य भोजन था।
अपनी रक्षा और अपनी भूख मिटाने के लिए सर्वप्रथम पत्थर के औजारों का ही सबसे अधिक उपयोग किया इसलिए इस युग को पाषाण काल कहते हैं। पत्थर से बने औजारों में समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं।
थोड़े समय बाद मानव ने गुफाओं में रहना प्रारम्भ कर दिया क्योंकि उसे तब तक घर बनाना नहीं आता था। शिकार की खोज में वह लगातार घूमता रहता था।इस प्रकार उसका कोई स्थाई आवास नहीं था।पुरापाषाण काल के आखिरी दौर में उसने चित्र बनाना भी सीख लिया।
उस समय की गुफाओं में उसके द्वारा बनाए गए चिन्न मिलते हैं। इन इन्हें चित्रों को देखने के बाद हमें पता चलता है की इस युग में मानव झुण्ड बनाकर ही शिकार करते थे। जिसे वह आपस में बाँटकर खाते थे। मानव यह समझ चुका था कि वह तभी जीवित रह सकता है जब वह दूसरों के साथ मिलकर चले। इस प्रकार एक दूसरे का सहयोग करने की भावना इस युग में विकसित हो चुकी थी।
फरीदाबाद जिले की अरावली में मिली कुछ गुफाओं से पता चलता है कि मानव समूह में रहते थे। कैसे करते थे शिकार? आदि मानव के पास न ही जंगली जानवरों जैसे पैने नाखून थे, न ही नुकीले दाँत, न जबड़े और न ही सींग उसकी बड़ी समस्या अपने से ज्यादा ताकतवर जंगली जानवरों से रक्षा करने व उनका शिकार करने की थी।इसके लिए उसने पत्थर के औजारों का निर्माण व प्रयोग किया, क्योंकि उसे पत्थर आसानी से प्राप्त हो जाते थे।
(तेजवीर मावी ने कहा है कि मेरी काफी अधिक रिसर्च हो चुकी है मैं अपने पूर्वज यानि कि आदिमानव इनके ऊपर रिसर्च कर रहा हूं जानना चाहता हूं कि हमारा अतीत क्या था कैसे हमारे पूर्वज रहते थे और क्या खाते थे कैसे गुफ़ाओं में रहते थे और पुरातत्त्व विभाग के साथ और अधिक अपने अतीत की जानकारी प्राप्त करूंगा )
तेजवीर मावी ने कहा की मानव जिस जानवर को देखता था या फ़िर जिस जानवर का शिकार करता था उन के ही चित्र बना देता था इन चित्रों के साथ मानव अपनी भी छाप छोड़ देते थे
Post A Comment:
0 comments: