इस सेमिनार में चाइल्ड वेलफेयर कमिटी एजुकेशन डिपार्टमेंट वुमन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट स्पेशल जूनाइल पुलिस यूनिट लेबर कोर्ट आदि रेस्क्यू से संबंधित सभी डिपार्टमेंट शामिल रहे।
एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की तरफ से अरुण कुमार शर्मा व मोहित ने बच्चों के बारे में बताया कि 0 से 14 बच्चों का एक ग्रुप होता है व 14 से 18 वर्ष बच्चों का एक ग्रुप होता है। जीरो से 14 वर्ष तक के बच्चे किसी भी संस्थान में काम नहीं कर सकते जबकि 14 से 18 वर्ष के बच्चे हजार्डयस वर्क में काम नहीं कर सकते।
उस संस्थान में जहां पर बच्चों को चोट लगने का भय हो 14 से 18 साल के बच्चे अपने माता-पिता के काम में या ब्लड रिलेशन में किसी संस्था में उनका काम करने में हाथ बता सकते हैं।
इसी अवसर पर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्रीमती सुकीर्ति गोयल ने बताया कि बच्चों को रेस्क्यू करना अलग काम है लेकिन उनको पुनर्वास करना उससे भी बड़ा काम है हमें बच्चों को रेस्क्यू के साथ-साथ उनके पुनर्वास पर भी अधिक जोर देना चाहिए क्योंकि हम जब किसी बच्चे को उसके जीवन में दखल देते हैं। तो हमें यह देखना चाहिए कि उसका भविष्य में किस प्रकार मुख्यधारा से जोड़कर पुनर्वास करना है।
पैनल एडवोकेट रविंद्र गुप्ता ने बताया कि बाल मजदूरी को रोकने के लिए हमें नियोक्ताओं को ठेकेदारों को जिनसे उन बच्चों को रेस्क्यू कराया गया है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके खिलाफ भी सेक्शन 79 जेजे एक्ट 75 बॉन्डेड लेबर 370 आईपीसी व लेबर एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करवा कर नियोक्ताओं को ठेकेदारों को रोक सके साथ ही साथ रेस्क्यू हुए बच्चों को सरकार द्वारा जारी की गई योजनाओं से लाभान्वित भी करना चाहिए ताकि वह भविष्य में दोबारा बाल मजदूरी न करें। इसके साथ-साथ सभी डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने रेस्क्यू के समय आने वाली अपनी-अपनी समस्याओं का समाधान भी किया।
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