विद्रोही ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 व 2021-22 में ग्रामीण विकास का लगभग 4500 करोड़ रूपये का बजट पहले ही लैप्स हो चुका है और जिस तरह से ई-टेडरिंग के विरोध में हरियाणा के सरपंच आंदोलनरत है, उसके चलते वित्त वर्ष 2022-23 में भी ग्रामीण विकास का अधिकांश बजट फिर लैप्स होनो तय हो गया है।
विगत तीन सालों मेें गांवों के विकासे के लिए जो लगभग 7 हजार करोड़ रूपये खर्च होना चाहिए था, वह भाजपा-जजपा सरकार की सुनियोजित तिकडमी चालों के चलते लैप्स हो गया और इन पैसों को भाजपा-जजपा सरकार ने अपने बजट घाटे का कम करने में प्रयोग करके ग्रामीण मतदाताओं के साथ धोखाधडी व विश्वासघात किया है। विद्रोही ने कहा कि मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर व भाजपा ग्रामीण विकास के लम्बे-चौडे दमगज्जे तो मारते है, लेकिन जमीन पर कुछ नही होता है।
भाजपा खट्टर राज में गांवों का नाम मात्र का विकास हुआ है और रूटीन के विकास कार्यो के अलावा गांवों के विकास के नाम पर जुमलों के अलावा कुछ नही मिला। ई-टेडरिंग विवाद से थोडा बहुत रूटीन का विकास कार्य होना था, वह भी ठप हो गया।
भाजपा-जजपा सरकार व मुख्यमंत्री खट्टर जी और पंचायत मंत्री देवेन्द्र बबली सत्ता अहंकार में गांवों के चुने हुए सरपंचों को नीचा दिखाने, अपमानित करने का कोई भी मौका नही चूकते है।
पंचायत मंत्री के विवादित व अपमानजनक बोलों के खिलाफ विगत डेढ़ माह से हरियाणा के सरपंच आंदोलनरत है पर भाजपा-जजपा सरकार इस विवाद का सर्वमान्य हल निकालने की बजाय सरपंचों को लगातार अपमानित करके गांवों के विकास को सुनियोजित रणनीति के तहत अवरूद्ध कर रही है। विद्रोही ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 खत्म होने में मात्र डेढ़ माह से कम समय बचा है।
ऐसी स्थिति में स्वभाविक है कि ई-टेडरिंग विवाद के चलतेे आने वाले डेढ़ माह गांवों के विकास के लिए न कोई योजना बननी है और न ही जमीन पर काम होगा। भाजपा-जजपा सरकार इसलिए भी इस विवाद का हल करने की बजाय बढा रही है ताकि वित्त वर्ष 2022-23 का ग्रामीण विकास का पैसो लैप्स हो जाये और गांवों के विकास पर खर्च होने वाले धन को भाजपा-जजपा सरकार अन्य कामों में प्रयोग कर सके।
विद्रोही ने कहा कि मुख्यमंत्री खट्टर व भाजपा-जजपा सरकार का यह रवैया गांव विरोधी व गांवों के विकास को अवरूद्ध करने वाला सुनियोजित षडयंत्र है।
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