फरीदाबाद- कोट गांव के पास का पहाड़ अब और ऐतिहासिक होने लगा है। स्थानीय युवा तेजवीर मावी की कई वर्षों की मेहनत अब रंग लाने लगी है। तेजवीर मावी यहाँ कई सुरंग खोज चुके हैं जहाँ लाखों वर्ष पहले आदि मानव रहते थे, आदि मानव के पैरों के एक दो नहीं सैकड़ों निशान भी पहाड़ पर मिले।
अब कोट गोपालगढ़ फरीदाबाद के निवासी तेजवीर मावी ने एक और खोज की है जिनके मुताबिक ओखलियां मिलीं हैं जिनको पांडवों द्वारा निर्मित बताया जाता है। उनके पूर्वज यहां आकर बसे थे, लेकिन ये ओखलियां उससे भी बहुत पुरानी हैं। इनका प्राचीन इतिहास किसी को पता नहीं है। उन्होंने बताया कि इन ओखलियों को देखने कई लोग यहां आते भी हैं।
ग्राम कोट के निवासी मुखिया केसर सरपंच मावी ने बताया कि अपना गांव का ही तेजवीर मावी वह पुरानी सभयता की खोज करते हुए कई वर्ष से इन ओखलियों को देखता आया हैं। उसने अपने बुजुर्गों से सुना है कि यहां पहाड़ की चोटी पर पहले एक संत रहा करते थे गुफा में जिन्का नाम श्री सिद्ध लता धारी बाबा हैं उसके बाद गोपाल नाम का राजा आया आपने गढ़ का निर्माण करवाया: लेकिन यह ओखली उससे भी बहुत पुरानी ऐसा प्रतित होता है की यह ओखली आदिवासियों द्वार जानवर के खून पत्थर को पीस कर रसायन बनाने के उपयोग में ली गई होगी रसायन से पुरातन् काल में आदिवासी पेंटिंग बनाया करते थे क्यू कि उस समय पेंट वगैरा नहीं होता था।
तेजवीर मावी ने बताया कि गांव से दो किमी दूर पहाड़ की खड़ी चढ़ाई वाले अत्यंत दुर्गम और बीहड़ झाड़ियों के बीच पहाड़ की चोटी पर गुमनामी के रूप में स्थित इन ओखलियों तक पहुंचना कठिन था। जहां पर पत्थर पर खुदी हुई तीन ओखलियां हैं, वहां चारों ओर झाड़ी होने के कारण वह देखने में भी नहीं आती थी। लेकिन ( तेजवीर मावी पिछले कई वर्षों से इन ओखलियों की खोज में प्रयासरत रहते , लेकिन एकदम खड़ी दुर्गम पहाड़ी में होने के कारण इन ओखलियों तक पहुंच पाने में परशानियां आई।
28 अक्तूबर को तेजवीर मावी और अपने ग्राम निवासी बुजुर्ग रोहताश मावी के सहयोग से इन ओखलियों तक पहुंचने और उनके चित्र लेने में सफल रहे। ( तेजवीर मावी ने बताया कि कोट गांव से करीब 300 मीटर ऊंचे पहाड़ के शिखर गोपालकोट की धार पर यह तीन ओखलियां हैं। तेजवीर मावी ने कहा कि उन्होंने स्वयं भी करीब 05 वर्ष पूर्व मुनिया धार की तीन ओखलियों को देखा था, लेकिन उस समय के चित्र उनके पास संरक्षित नहीं रहे। इसलिए वह पिछले कई वर्षों से इन ओखलियों के ताजा चित्र लेकर इनका ऐतिहासिक महत्व जुटा रहे थे।
उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक दृष्टि से ये कपमार्क मेगलिथिक ओखलियों के पुरातात्विक अवशेष हरियाणा के इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं। पुरातात्विक दृष्टि से सलेटी रंग के ठोस पाषाण खंड में खोदी गई ये कपमार्क ओखलियां मेगलिथिक श्रेणी के महाश्मकालीन अवशेषों के तहत आती हैं। इनकी प्राचीनता का काल खंड तीन-चार हजार सहस्राब्दी ईस्वी पूर्व तक हो सकता है। इनका इतिहास बताता है कि वैदिक कालीन मातृपूजा की धार्मिक गतिविधियों के साथ इन ओखलियों का घनिष्ठ संबंध रहा था।
तेजवीर मावी ने अरावली में स्थिति इन 11 ओखलियाओं के मेहत्व को सबसे पहले उजागर किया और हरियाणा के प्रसिद्ध पुरातत्व विभाग से उप निदेशक बनानी भट्टाचार्य ने कहां कि मध्य पाषाण काल और नव पाषाण काल में इन ओखलियों का प्रयोग किया जाता था। इनका उपयोग पत्थर के औजारों को पीसने के लिए किया जाता था।
तेजवीर ने बताया कि कुल 11 ओखलियों की खोज मैं कर चुका हूँ। दो गांव में भी हैं जिनमे गांव के बड़े बुजुर्ग हुक्का में प्रयोग होने वाली तम्बाकू कूटते हैं।
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