नई दिल्ली/ फरीदाबाद- राजनीति के जानकारों को ये बताने की जरूरत नहीं है कि कई दशकों से केंद्र में हो या राज्यों में या छोटे चुनावों में, अधिकतर नेता दूसरे कार्यकाल में ठीक से पहचाने जाते हैं और फिर नेता जी तीसरे कार्यकाल में जनता द्वारा धूल चटा पर जमीन पर गिरा दिए जाते हैं। केंद्र और कई राज्यों की सरकारें इसका उदाहरण हैं। कुछ नेता तीसरा क्या और ज्यादा कार्यकाल पूरा करते हैं उनमे कुछ खास होता है। कुछ तो पहले कार्यकाल के बाद ही जमीन पर गिरा दिए जाते हैं। छोटे चुनाव की बात करें तो इस बार फरीदाबाद नगर निगम के पदाधिकारी एवं तमाम पार्षदों के बारे में जनता की राय देख लग रहा है कि जनता इन नेताओं के पहले ही कार्यकाल से तंग है और इन्हे जमीन पर गिराने का इन्तजार कर रही है।
शहर के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों से बात करने पर पता चला कि फरीदाबाद नगर निगम के पिछले विजेताओं का कार्यकाल अब तक के फरीदाबाद निगम के इतिहास में सबसे खराब बताया जा रहा है। कल हमने बताया था कि 40 में 20 पार्षद इस बार चुनाव लड़े तो लुढ़क सकते हैं। लोगों का कहना है कि पांच वर्ष तक मेयर रहीं सुमन बाला शायद ही इस बार किसी वार्ड से चुनाव जीत सकें। इस बार मेयर का डायरेक्ट चुनाव है और फरीदाबाद के लोग चराग लेकर किसी अच्छे मेयर उम्मीदवार को ढूंढ रहे हैं लेकिन अब तक कोई नहीं मिला। कई बार ऐसा देखा गया है कि पार्षद अच्छा काम करते हैं तो विधायक सांसद मंत्री तक बन जाते हैं। कृष्णपाल गुर्जर, पंडित शिव चरण लाल शर्मा जैसे कई नेता इसका उदाहरण हैं। इस बार के अधिकतर पार्षद तो शायद पार्षद भी न बन पाएं, विधायक, सांसद, मंत्री दो दूर की बात है।
शहर के लोग फिलहाल आधा दर्जन पार्षदों के कामकाज को ठीक बता रहे हैं। अन्य सभी पार्षदों के कामकाज को बेहद ख़राब बताया जा रहा है। कहा जा रहा है शहर को इन्होने लुटवाया, नरक बनवाया वरना किसी लुटेरे में इतना कहाँ दम था कि कागज़ पर विकास दिखा करोड़ सौ करोड़ डकार जाए। कठपुतली मेयर के कारण भी ऐसा संभव हुआ। केंद्र और राज्य सरकार से भरपूर पैसा आया लेकिन कहाँ चला गया किसी को नहीं पता। अब निगम चुनाव नजदीक हैं तो कुछ सड़कें बनवाई जा रहीं हैं , अगर चुनाव न होते तो शहर के लोग यूं ही चिल्लाते रहते कोई नहीं सुनता, शहर के लाखों लोगों को ईमानदार, दमदार और दबंग मेयर उम्मीदवार की तलाश है जो किसी की कठपुतली न बने। खुलकर हर फैसले ले और शहर का विकास करवाए।
लोगों का कहना है कि कभी ये शहर ऐतिहासिक शहर था लेकिन अब इस शहर का हाल यूपी, बिहार के तमाम पिछड़े शहरों से ज्यादा बेहाल हो गया है। मालामाल हुए तो कुछ नेता वगैरा, जनता का हाल बेहाल है। ऐतिहासिक उद्योग नगरी सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। मथुरा रोड यानि नेशनल हाइवे पहले से चमक गया है, कई फ्लाईओवर बन गए हैं लेकिन इसका तो टोल टैक्स लिया जा रहा है और पहले से काफी ज्यादा इसलिए नेता इसके लिए अपनी पीठ थपथपाते हैं तो वो हंसी के पात्र हैं।
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