कुरूक्षेत्र राकेश शर्मा- भारत युवाओं का देश है भारत की जनसंख्या लगभग १३८ करोड़ है ओर इनमें युवाओं की आबादी की बात कि जाए तो लगभग २५ करोड़ युवा भारत में रहते है जिसके कारण भारत युवाशक्ति कहलाता है यानि कुल जनसख्या का लगभग १७ प्रतिशत युवा रहता है। इतनी बड़ी तादाद होने के बाबजूद भी युवा अपने आप को ठगा ओर सहमा हुआ सा कर रहा है। अपने ही देश में युवाओं का इस्तेमाल हो रहा है ये सवाल युवाओं के जहन में बार बार उठ रहा है जिसकी वजह से वह मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा है। देश के कोने कोने पर जहां भी नजर दौड़ाई जाए हर तरफ युवा ही युवा नजर आता है।
सडक़ो पर आंदोलन करता हुआ युवा, रोजगार मांगता युवा, रैलीयों में नारे लगता हुआ युवा, दर दर की ठोकरें खाता हुआ आपको हर जगह नजर आ जाऐगा। किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी होता है युवा लेकिन युवाओं को जो दिख रहा है ओर जो वह महसूस कर रहे है उसकी वजह से वे विदेश में जाकर इस उर्जा ओर सोच को लगाने में मजबूर हो रहे है। कुछ वर्षो में ही युवाओं का देश से विदेश में जाने का क्रम बढ़ता जा रहा है जिसका सबसे बड़ा एक कारण बेरोजगार होना भी है पढ़लिख कर अपने सपनों को साकार करने में विफल हो चूका है युवाओं को अब कोई भी आशा की किरण दिखाई नही दे रही। जिसके कारण वह अब विदेशो की ओर कदम बढ़ा रहा है ओर हर रोज युवाओं की देश से पलायन में इजाफा हो रहा।
बिते हुए कुछ वर्षो में देखा जाए तो अब युवाओं के देश से विदेश में जाने की तादाद में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है जोकि सोचनिए है। राजनीतिक दल केवल युवाओं का इस्तेमाल करने में लगे हुए उनकी जवानी को केवल कुछ लुभावने वायदों के सहारे ही खत्म करने पर तूले हुए है। जो अब युवाओं को भलिभातिं समझ आ गया है ओर वो अपने लिए ओर अपने परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए विदेश में छोटी मोटी नौकरी कर ही घर का गुजारा करने के लिए प्रयत्नशील है। गांव से लेकर शहर तक युवाओं के बहार जाने की होड़ सी मची हुई है कोई शिक्षा के नाम पर, तो कोई ज्यादा से ज्यादा धन कमाने की इच्छा से विदेश में अपनी मंजिल का रास्ता बना रहा है। ओर यही कारण है विदेशों में भेजने वाले आइलैट्स संस्थानों में लगातार वृद्वि हो रही है। जहां पहले बढ़े बढ़े शहरों में इन संस्थानों को देखा जाता था अब गांव में इन सस्थानों ने पैर पसारना शुरू कर दिए है। जिसके कारण युवाओं को अग्रेंजी शिक्षा का बेहतर ज्ञान देकर उन्हें विदेश में भेजा जा रहा है।
युवा देश में कामयाबी ना पाकर विदेश मेें जाने के लिए लाखों रूपये खर्च करने लगे है जिसके कारण अभिभावकों को अपने खेत खलियानों को गिरवी रखना पड़ता है या फिर साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है लेकिन अपने बच्चों के सपनों को साकार करने के लिए माता पिता ये बलिदान देने को भी तैयार हो रहे है यहां तक कि कई मामलों में विदेशों के नाम इन युवओं को पैसों की बड़ी गड़बडिय़ां होने के मामले भी प्रकार में आ रहे ओर युवाओं का जल्द से जल्द विदेश में जाने के कारण इन हेराफेरीयों के मामले में भी बढ़ रहे है। युवाओं के उपर अनेक जिम्मेवारियां होती है , कई सपने होते है, लेकिन इन जिम्मेवारियों ओर अपने सपनों को साकार करने के लिए वह बड़ी से चुनौतियों का सामना कर रहा है। भारत युवाओं का देश है ये तो फर्क की बात है लेकिन युवाओं अपने देश के लिए कोई भूमिका निभाने में विफल है ये देश के लिए शर्म की बात है।
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