नई दिल्ली- एक साल बाद अब देश में बहु चर्चित किसान आंदोलन ख़त्म होने जा रहा है। 378 दिन तक आंदोलन चला और अब किसान विजय दिवस मनाएंगे। विजय दिवस कल शुक्रवार को मनाने की योजना थी लेकिन सीडीएस जनरल बिपिन रावत और अन्य सैन्य अधिकारियों के निधन के चलते इसे टाला गया है। कल जनरल बिपिन रावत और अन्य शहीदों का अंतिम संस्कार होगा। इस वजह से अब किसान शनिवार को विजय दिवस मनाएंगे।
अब किसान खुशी-खुशी घर वापसी को तैयार है। किसानों व सरकार के बीच सहमति बनने के बाद कुंडली बॉर्डर पर आज संयुक्त किसान मोर्चा की अहम बैठक हुई, जिसमें आंदोलन वापसी का निर्णय लिया है। सरकार ने लगभग हर मांगें मान ली जिस वजह से आंदोलन ख़त्म होने जा रहा है।
किसान जहां खुश हैं वहीं सरकार के भक्त दुखी हैं और सबसे ज्यादा कुछ चैनल वाले दुखी हैं जो किसानों को आतंकी बोलते थे और कहते थे सरकार अपनी जगह पर ठीक है। ऐसे चैनल वाले भक्त उसी दिन से रो रहे हैं जिस दिन से पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया और सुबह 9 बजे वापसी का एलान कर दिया। ये भक्त पूरे एक साल तक किसानों को भला बुरा कहते रहे। इन्हे किसानी का क़ ख ग घ नहीं पता है और फाइव स्टार स्टूडियो में बैठ किसानों को गरियाते रहे लेकिन अब इन्हे किसान आइना दिखा रहे हैं।
देश के तमाम बुद्धिजीवियों का कहना है कि किसान आंदोलन न होता तो सच में देश की जनता 25 वाला आटा 50 से 100 रूपये प्रति किलो खरीदने पर मजबूर हो जाती और एक किलो आटा पैकेट में बिकता और यही हाल चावल और अन्य खाद्य पदार्थों का होता और सरसों का तेल रिफाइंड 300 के पार पहुँच जाता। और यही नहीं अब तक डीजल पेट्रोल 150 प्रति लीटर पार हो गया होता।
सरकार के लिए कुर्सी खास है और कुर्सी रहेगी तभी वो सरकार कहलाएगी। कुर्सी खिसकने लगी थी। जनता नाराज हो रही थी इसलिए सरकार बैकफुट पर आई और किसानों की अधिकतर मांगें मान ली गईं क्यू जैसे कहा जाता है कि जान है तो जहान है वैसे कहा जा रहा है कि कुर्सी है तो सब कुछ है। कहा जा रहा है कि सरकार सहित वक्त पर संभल गई गई है ,जल्द कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और लोकसभा चुनाव में अभी ढाई साल का समय है।
लोगों का कहना है कि सरकार ने जो फैसला लिया वो सरकार के हित में उचित है, फैसला लेने में थोड़ी देरी हो गई। कहा ये भी जा रहा है कि कुछ मीडिया चैनलों ने एकतरफा ख़बरें दिखा अपनी विश्वश्नीयता खो दी और अब वो रो रहे हैं। ऐसे लोगों का रोना जरूरी है क्यू कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और ये भक्तगिरी में एकतरफा ख़बरें दिखा रहे थे। किसान आंदोलन में कुछ लोग गलत थे लेकिन सभी किसानों को आतंकी कहना अनुचित था। हरियाणा के तमाम किसान आंदोलन में शामिल थे और भक्तों ने उन्हें भी आतंकी कहा जबकि ऐसे तमाम किसानों के बेटे भतीजे एवं अन्य परिजन देश की सीमा पर तैनात हैं और देश की रक्षा कर रहे हैं और यही नहीं पंजाब के ऐसे किसान भी दिल्ली की सीमाओं पर दिखे जिनके बेटे भारत-पाकिस्तान की सीमा पर तैनात हैं।
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