फरीदाबाद- 8 जनवरी नजदीक आने वाली है लेकिन फरीदाबाद नगर निगम चुनाव का कोई अता-पता नहीं है। आज नगर निगम कमिश्नर यशपाल यादव ने वार्ड नमबर एक के एक कार्यक्रम में पत्रकारों के सवाल पूंछने पर बताया कि वार्डबंदी फरवरी तक हो जाएगी जिसके बाद निगम चुनाव करवाए जाएंगे। अब माना जा रहा है कि निगम चुनाव मार्च में करवाए जा सकते हैं लेकिन इसी दौरान कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और सत्ताधारी पार्टी के नेता यहाँ प्रचार करने भी जाएंगे ऐसे में आशंका है कि कहीं निगम चुनाव लटक न जाएँ।
विपक्ष के एक नेता का कहना है कि अप्रैल मई में लोग निगम मुख्यालय पर मटका फोड़ने लगते हैं क्यू कि शहर में जगह-जगह पानी की किल्लत होती है और कहीं-कहीं बिजली की भी किल्लत शुरू हो जाती है ऐसे में सत्ताधारी गर्मी में शायद ही चुनाव करवाएं और गर्मी के बाद मानसून सीजन शुरू होता है और बारिश में शहर आधे घंटे की बारिश में लबालब हो जाता है। अधिकतर सड़कें तालाब बन जाती हैं और अब तो अधिकतर सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं इसलिए सत्ताधारी नेता बारिश में भी चुनाव करवाने से कतराएंगे। ऐसे में कहीं निगम चुनाव अक्टूबर नवम्बर तक न लटक जाएँ जैसे कि पंचायत चुनाव कई महीनों से लटके हैं।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि प्रदेश सरकार ने जानबूझकर पंचायत चुनाव लटकाये हैं क्यू कि चुनाव लटकने से सरकार का अरबों का फायदा हो रहा है। हरियाणा में 6186 के आस पास ग्राम पंचायतें हैं। एक ग्राम पंचायत में अगर सरकार एक साल में एक करोड़ भी विकास के लिए देती है तो 6186 करोड़ रूपये हैं में एक साल में सरकार के बच रहे हैं क्यू कि न बांस है न बांसुरी बज रही है। पंच सरपंच हैं ही नहीं तो सरकार से अपने गांवों के विकास के लिए पैसा कौन मांगेगा। जितने पंच सरपंच थे सब भूतपूर्व हो चुके हैं।
अब फिर बात करें फरीदाबाद नगर निगम चुनाव की तो फरवरी में सभी पार्षदों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और हजारों पंच सरपंचों की तरह फरीदाबाद के सभी वर्तमान 40 पार्षद भूतपूर्व हो जाएंगे , निगम या सरकार से विकास के लिए एक रूपये तक नहीं मांग पाएंगे। 40 वार्डों की बात करें तो हर वार्ड में वार्ड नंबर 20 की पार्षद हेमा बैसला के पिता पूर्व पार्षद कैलाश बैसला और वार्ड नंबर एक की पार्षद सपना डागर के जेठ मुकेश डागर जैसा नेता नहीं है जो अपने यार दोस्तों से अपनी जेब से अपने क्षेत्र का विकास सर्वपरि समझता हो। अपने वार्ड के सक्षम लोगों की मदद से अपने वार्ड का विकास करवाता हो।
वर्तमान में फरीदाबाद के जो हालात हैं बहुत ही खराब हैं। तीन-तीन साल में भी नेता एक-दो किलोमीटर की सड़क नहीं बनवा पा रहे हैं। तमाम सड़कों पर इतने गड्ढें हैं कि एक दो दुर्घटनाएं इन्ही गड्ढों से रोजाना हो रहीं हैं। प्रदूषण में शहर के कई बार सबसे प्रदूषित शहर का खिताब मिल चुका है। शहर के 87 फीसदी लोग फरीदाबाद को स्मार्ट सिटी नहीं नरक सिटी कहते हैं। प्रदूषण और सड़क के गड्ढों से लोग बेमौत मर रहे हैं और शहर की कई निजी अस्पतालों ने अपनी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या और बढ़ा ली है। सरकारी अस्पताल का हाल बेहाल है और शहर के तीन नंबर में कांग्रेस सरकार के समय में बना एक मेडिकल कालेज सिर्फ एक डिब्बा साबित हो रहा है। जुकाम बुखार के मरीज भी यहाँ से निजी अस्पतालों में रेफर कर दिए जाते हैं।
लगभग दो दशक पहले फरीदाबाद एशिया का बहुत अच्छा शहर कहा जाता था। दुनिया भर में इस शहर का नाम था लेकिन अब इस शहर का नाम बदनाम हो गया। शहर के हजारों छोटे और बड़े उद्योगपति अब पहले से अधिक टैक्स देते हैं। शहर की करीब 30 लाख जनता भी सुबह सोकर उठती है तो किसी न किसी रूप में टैक्स देती है और रात्रि में सोने के पहले तक टैक्स देना जारी रखती है लेकिन जनता भी बेमौत मर रही है। तमाम उद्योगपति दूसरे राज्यों में अपनी इकाई स्थापित कर रहे हैं और जनता की बात करें तो अब यहाँ से पलायन करने वाले अधिक हैं। कॉरोनकाल के पहले चरण में फरीदाबाद पलायन करने वाले अधिकतर मजदूरों से अब तक वापसी नहीं की।
फरीदाबाद फिर फकीराबाद बनने की राह पर राकेट की रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है। शहर के गरीब मुफ्त में राशन के लिए कई-कई दिन तक राशन डिपो पर चक्कर लगाते हैं और शहर में अधिकतर बीपीएल कार्ड उन्ही के बने हैं जिनके कई-कई मकान हैं और आयुष्मान भारत योजना के कार्ड भी अधिकतर अमीरों के बने हैं। गरीबों का हाल बेहाल है। 2011 की जनगणना में जिन लोगों की नेताओं से जान पहचान थी उन्हें के बीपीएल कार्ड बने भले ही हो करोड़पति थे और फिर उन्ही लोगों के आयुष्मान भारत के कार्ड बन गए।
कुल मिलाकर निगम चुनाव लटके तो और लटकेगा फरीदाबाद का विकास
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