चण्डीगढ़, 26 नवंबर। हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि साहित्य सशक्त माध्यम है जो समाज को प्रभावित करता है और समाज की समस्या व पीड़ा को दिल से महसूस कर लोगों के बीच लाने वाला ही सही मायने में साहित्यकार है। वे आज गुरुग्राम के लोक निर्माण विश्राम गृह में गुरुग्राम विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मार्कण्डेय आहूजा व उनकी धर्मपत्नी डा. अंजू आहूजा द्वारा लिखित पुस्तक ‘जीतेंगे कोरोना का रण‘ का विमोचन करने उपरांत उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे। श्री दत्तात्रेय ने कहा कि कोरोना महामारी आज पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। पूरा विश्व लगभग 2 साल से इस महामारी की समस्या से जूझ रहा है। संकट की इस घड़ी में लोगों का मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता है। डा. मार्केंडेय आहूजा द्वारा तैयार की गई यह काव्य रचना लोगों का मनोबल बढ़ाने की दिशा में सार्थक प्रयास है। कोरोना महामारी के दौरान डॉक्टरों, प्रशासनिक अधिकारियों, समाजसेवी संस्थाओं , स्वयंसेवकों आदि के साथ साथ साहित्यकारों सहित कोरोना योद्धाओं ने लोगों को महामारी से उबारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में भी महामारी से उबरने में साहित्य के महत्व को बताया गया है।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से कोरोना के दुष्प्रभावों को रेखांकित कर समाज को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया गया है। इसके शीर्षक में सकारात्मकता की झलक दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि साहित्य की रचना बुद्धि विकास से की जाती है। बुद्धि मन को सावधान करती है और जिसकी बुद्धि विकसित होती है, वही बड़ा कवि बनता है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में लोग कितनी मुसीबत में थे, इसका वर्णन नही किया जा सकता लेकिन इस पुस्तक के कवर पेज का चित्र दर्शाता है कि देश सारा एकजुट होकर कोरोना के रण को जीतेगा । रण अभी चल रहा है और मुझे विश्वास है कि भारत की जनता मिलकर इस रण को जीतेगी तथा विश्व को संदेश भी देगी।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी गुरूग्राम के चेयरमैन डॉ. के.के. खंडेलवाल ने डॉ मार्कण्डेय आहूजा व श्रीमती डॉ अंजू आहूजा द्वारा रचित पुस्तक की विवेचना की । उन्होंने कहा कि इस पुस्तक से आहूजा दंपत्ति का मातृभूमि के प्रति प्रेम व राष्ट्रवाद झलकता है। डा. आहूजा गीता जी से जुड़े हुए है और इनकी हर रचना में यह परिलक्षित भी होता है। कोरोना काल में आहूजा दंपत्ति ने निष्काम और समर्पण भाव से चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं दी। वे कर्मशील यायावर हैं। जो लोग कोरोना से लड़ाई हार गए उनके परिवारों पर उस समय जो बीती , उस करूणा और संवेदना का भी पुस्तक में बखूबी ढंग से वर्णन किया गया है। साथ ही रचना में ‘ आओ जलाएं आशा के दीप इस अंधियारे में‘ जैसी कविता से आमजनता का मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया गया है। ये कविताएं केवल शब्द नहीं हैं , बल्कि इनका गहन अर्थ है। डा. खंडेलवाल ने कहा कि डॉ आहूजा ने भी पुस्तक की प्रस्तावना में ही अपनी भावनाओं को शब्दों का रूप देते हुए लिखा है कि ‘मुश्किलों से कह दो उलझे ना हमसे, हमें हर हालात में जीने का हुनर आता है‘। ये पंक्तियां कोरोना के निराशा भरे दौर में इस वैश्विक महामारी से लड़ने में लोगों की इच्छाशक्ति को और सुदृढ़ करने का कार्य करेंगी।
इस अवसर पर मीडिया प्रतिनिधियों से बात करते हुए पुस्तक के लेखक डॉ. मार्केंडेय आहूजा ने बताया कि कोरोना काल के दौरान जो एकाकीपन की भावनाएं थी, उसको इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने शब्दों में पिरोया है। उस समय चाहे लोगों की वेदना हो या भारत की आत्मनिर्भरता की बात हो, हमारे पास इस महामारी से सामना करने के लिए पर्याप्त संसाधन भी नही थे। ऐसे समय में लोगों के साथ जो घटित हुआ, उसे व्यक्त करने का कार्य इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है। उन्होंने कहा कि पुस्तक के अंत मे आशावाद के साथ भगवान से पुकार की गई है कि ‘ हे भगवान इतना सब कुछ हो चुका है, अब आपके अवतार लेने में कितनी देरी है‘। उन्होंने विश्वास दिलाया कि कोरोना से जारी रण में उनकी यह पुस्तक लोगों का मनोबल बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी।
Post A Comment:
0 comments: