28 सितम्बर 2021- अमर शहीद व प्रसिद्घ क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह की 115वीं जयंती पर स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने अपने कार्यालय में अपनी भावभीनी श्रद्घाजंली दी। इस अवसर पर कपिल यादव, अमन कुमार, अजय कुमार ने भी अपने श्रद्घासुमन शहीद भगत सिंह को अर्पित किए। विद्रोही ने कहा कि शहीदे आजम भगत सिंह का नाम भारत के इतिहास में सदैव के लिए स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। राष्टï्र्र व गरीबों की रक्षा की सेवा करने वाले सभी युवा भगत सिंह के जीवन से प्रेरणा पाते रहेंगे। 28 सितम्बर 1907 को आजादी के पूर्व के पंजाब के जिला लायलपुर के गंगा गांव, पाकिस्तान में एक देशभक्त परिवार में सरदार किशनसिंह के घर माता विद्यावती की कोख से जन्मे। बच्चे को दादा अर्जुन सिंह एवं दादी जयकौर ने भागों वाला कहकर उसका नाम भगत रख दिया। सरदार किशनसिंह के पुत्र भगत ने क्रांतिकारी भगतसिंह बनकर अपना अमूल्य बलिदान देश को अंग्रेजों से आजाद करवाने के लिए 23 मार्च 1931 को फांसी का फंदा चूमकर पूरे देश के हीरो व प्ररेणा स्त्रोत बन गए।
भगत सिंह ने राष्टï्रभक्ति व देश की आजादी के लिए लडऩे की सीख अपने परिवार से जन्म से ही सीखी थी। शहीद भगत सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे। लाहौर के कालेज में शिक्षा लेते समय उनमें क्रांतिकारी समाजवादी विचारधारा व अंग्रेजों से देश को आजाद कराने की भावना और तेजी से पनपी। विद्रोही ने कहा कि अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करने के लिए भगत सिंह ने अपने दूसरे क्रांतिकारी साथी शहीद चन्द्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया। जब लाहौर में साईमन कमीशन के खिलाफ जलूस निकालते समय अंग्रेजी पुलिस ने सांडर्स के नेतृत्व में लाठिया बरसाकर लाला लाजपत राय के सिर पर लाठियां बरसाई और जिसके कारण पंजाब केसरी लाला लाजपत राय शहीद हुए, तभी भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने सांडर्स को दंडित करने का प्रण लिया था। सांडर्स की गोली मारकर यमलोक पहुंचाकर ही भगत सिंह व उनके साथियों ने अंग्रेजी सरकार को खुली चुनौती दी।
विद्रोही ने कहा कि केन्द्रीय एसेम्बली दिल्ली में भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ धुंए के बम धमाके करके और आजादी के पर्चे फेंककर सारी दुनिया को क्रांतिकारियों का संदेश दिया। भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने केन्द्रीय एसेम्बली में बम धमाका करके भागने की बजाय अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया ताकि जब उन पर मुकदमा चले तो क्रांतिकारियों का आजादी से अर्थ क्या है और अंग्रेजी साम्राज्य से मुक्ति क्यों चाहते है, इसको उन पर चलने वाले मुकदमे के दौरान कोर्ट के माध्यम से पूरी दुनिया को बता सके। भगत सिंह व उनके साथी अपने इस मकसद में कामयाब भी हुए और अंग्रेज सरकार ने रात्रि को जिस तरह भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटकाया, यह कायरतापूर्ण घटना इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है।
विद्रोही ने कहा कि जो साथी आतंकवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, गैरबराबरी व भ्रष्टïाचार से लडक़र समतामूलक समाज की स्थापना करने में विश्सास करते है, उनके लिए आज भी भगत सिंह के विचार व जीवन प्ररेणा का स्त्रोत है। शहीद भगत सिंह को श्रद्घाजंली देते हुए उनके दिखाये मार्ग पर चलने का संकल्प लेकर समतामूलक समाजवादी समाज बनाने के लिए काम करते रहना ही इस महान क्रांतिकारी को सही अर्थो में हम श्रद्घाजंली दे सकते है।
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