नई दिल्ली- पिछली बार पंजाब में सत्ता से चूक गई आम आदमी पार्टी कल से बहुत खुश है। केजरीवाल की एक दो नहीं अब पाँचों उंगलियां घी में हैं क्यू कि कांग्रेस का पंजा अब पंजाब में सत्ता में वापसी करता नहीं दिखता ऐसा राजनीति के जानकारों का कहना है। पिछली बार 20 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी यहाँ मुख्य विपक्षी पार्टी बनी और दर्जनों सीटों पर आम के उम्मीदवार बहुत कम वोटों से हारे। अगले साल पंजाब में चुनाव हैं और जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की आपसी कलह अब जल्द ख़त्म नहीं होगी। आज पंजाब का नया मुख्य्मंत्री चुना जायेगा और माना जा रहा है कि कांग्रेस अमरिंदर सिंह को कांग्रेस में बने रहने को कहेगी लेकिन अमरेंद्र सिंह शायद ही मानें। किसी और पार्टी में जा सकते हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि AAP धीरे-धीरे पंजाब के बड़े हिस्से में अपनी पकड़ बना रही है। यहां पार्टी न सिर्फ सरकार विरोधी भावनाओं के आधार पर अपना चुनावी अभियान जारी रखे हुए है, बल्कि लोगों से एक नई पार्टी को मौका देने की अपील भी की जा रही है। आम आदमी पार्टी ने हर राज्य की तरह ही पंजाब में भी मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। हालांकि, आम आदमी पार्टी की अपनी चुनौतियां भी हैं। पहली चुनौती तो यही है कि राज्य में पार्टी के पास मुख्यमंत्री का चेहरा हीं है। इसके अलावा पार्टी पंजाब को भी दिल्ली से चलाना चाहती है। इस मंशा ने पार्टी को साल 2017 में भी नुकसान पहुंचाया था।
दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस साल जून में ऐलान किया था कि पंजाब में पार्टी का सीएम कैंडिडेट कोई सिख होगा। ऐसे में कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी अमरेंद्र सिंह पर भी डोरे डाल सकती है। केजरीवाल की चुप्पी बहुत कुछ बता रही है। कल के घटनाक्रम के बाद उन्होंने पंजाब के बारे में अभी तक एक भी ट्वीट नहीं किया है न ही कोई बयान दिया।
बात करें अकाली दल की तो भाजपा से नाता तोड़ने के बाद भी पार्टी को कोई बड़ा फायदा नहीं दिख रहा है। किसानों के मुद्दों पर पार्टी ने भाजपा से नाता तोडा था लेकिन कहा जा रहा है कि जब तीनों क़ानून बनाये गए थे तब पार्टी ने समर्थन किया था। भाजपा की बात करें तो पंजाब में पार्टी का जनाधार पहले से ज्यादा नीचे खिसक गया है। चुनावों में टिकट लेने वाले भी बहुत कम मिलेंगे ऐसा स्थानीय लोगों का कहना है।
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