नई दिल्ली - देश के कई राज्यों में वैक्सीन की कमी से टीकाकरण अभियान फिलहाल रुका पड़ा है लेकिन निजी अस्पतालों में टीकाकरण अभियान जारी है। इसे एक सोंची समझी नीति बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि सरकार चाहती है कि देश के संपन्न लोग पैसे देकर वैक्सीन लगवा लें इसके बाद जो लोग बचेंगे उन्हें वैक्सीन लगवा दी जाएगी। इससे सरकार पर अधिक बोझ नहीं पड़ेगा। कुछ जानकारों का कहना है कि आम आदमी के लिए ये नीति अच्छी नहीं है। निजी अस्पताल वाले काफी अधिक पैसे ले रहे हैं। हाल में कहा गया कि कुछ होटलों में भी पॅकेज पर वैक्सीन लगाईं जा रही है। देश में कुछ लोगों ने आपदा में अवसर तलाश कर लिया है।
देश में अक्सर देखा जाता है कि आम आदमी हर जगह लुट रहा है। शिक्षा का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य का। परिजन भूखे रहकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। निजी स्कूलों की फीस किसी भी तरह देते हैं। अस्पतालों का बिल भी ऐसे ही और अब ऐसे ही वैक्सीन भी लगवाना पड़ा तो उनकी कमर और टूट जाएगी क्यू कि पिछले साल से ही अधिकतर लोगों के कामकाज बंद हैं और मंहगाई सुरसा की तरह मुँह खोले लीलने को तैयार खड़ी है।
आपको बता दें कि 30 अप्रैल तक कोविशील्ड और कोवाक्सिन निजी अस्पतालों में एक खुराक 250 रुपये थी। एक मई से कोविशील्ड की एक खुराक 600 रुपये, पांच फीसदी जीएसटी, सेवा शुल्क अलग यानी कीमत 800 से 900 रुपये हो गई और कोवाक्सिन की एक खुराक 1200 रुपये में, पांच फीसदी जीएसटी, सेवा शुल्क अलग यानि कीमत 1250 से 1400 रुपये तक पहुँच गई। इस तरह एक व्यक्ति के लिए दो खुराक कम से कम दो हजार रुपये में, पांच सदस्यों के एक परिवार वाले का खर्च 10 हजार रुपये आ रहा है। यही है वैक्सीन का खेल जो हरियाणा अब तक ने दो हफ्ते पहले बता दिया था।
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