यही हाल रहा तो कांग्रेस को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कोई ख़ास फायदा नहीं मिलेगा। जो हाल कांग्रेस का बंगाल में हुआ वही यूपी में होगा। उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है और सिर्फ प्रियंका गांधी वहाँ कभी-कभार दिख रही हैं। टीम नदारद है। फिलहाल कांग्रेस के पास ज्यादा बड़ी और प्रभावी टीम है भी नहीं। कमलनाथ बीमार पड़े हैं, अशोक गहलोत और सचिन पायलट आपस में ही उलझे हैं। सिद्धू और कैप्टन आपस में उलझ पंजाब तक ही सीमित हैं।
इन नेताओं के साथ महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव भी बहुत खुश नहीं हैं। कभी सोशल मीडिया की जिम्मेदारी संभालने वाली दिव्या स्पंदना भी चुप्पी साधे हुए हैं। इससे साफ है कि पार्टी के युवा नेता बहुत खुश नहीं हैं। लगातार हार के बाद उन्हें अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। इसलिए पार्टी नेता अपना राजनीतिक करियर बचाने के लिए पाला बदलने के लिए तैयार हैं।
हाल में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कांग्रेस के दो चेहरे ही मैदान में दिखे। राज्य सभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा के अलांवा दिल्ली, एमपी, राजस्थान, यूपी में समाजसेवा के माध्यम से अपनी अलग पहचान बनाई तो यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास ने भी देश के कई राज्यों के लोगों की मदद की। पार्टी के तमाम नेता घर बैठे ट्विटर पर किसी को जन्मदिन की बधाई देते रहे तो किसी के निधन पर दुःख जताते रहे।
जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला टूट सकता है। उन्हें लगेगा कि पार्टी में उनका भी कोई भविष्य नहीं है। देखते हैं अब कांग्रेस करती है।
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