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चाटुकारों ने कांग्रेस को रसातल की तरफ धकेला 

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नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने हाल में कुछ सवाल उठाये थे और कहा था कि देश की जनता अब कांग्रेस को विपल्प नहीं मानती इसलिए पार्टी को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव और कई राज्यों में हुए उप-चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद एक अख़बार को साक्षात्कार देते हुए ऐसा कहा था। एक और  नेता ने कहा था कि कांग्रेस को कुछ समझाने का मतलब भैंस के आगे बीन बजाना जैसे है तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तारिक अनवर ने भी अपनी पार्टी पर ही सवाल उठाया था। अब सिब्बल को तमाम कांग्रेसी नेता ही घेर रहे हैं। 

सबसे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सिब्बल पर निशाना साधा और कहा कि कि पूर्व केंद्रीय मंत्री को पार्टी के "आंतरिक मुद्दों" मीडिया में नहीं लाना चाहिए और कहा कि इससे देश भर में पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है। 

इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कपिल सिब्बल को घेरा और कहा कि समय-समय पर रणनीति की पुनर्मूल्‍यांकन की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा मीडिया तक जाकर नहीं किया जा सकता। उन्होंने फेसबुक पर लंबे पोस्‍ट के जरिये अपनी बात रखी। खुर्शीद ने आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर की इन लाइनों के साथ अपनी बात की शुरुआत की। na thī haal kī jab hameñ ḳhabar rahe dekhte auroñ ke aib o hunar 

paḌī apnī burā.iyoñ par jo nazar to nigāh meñ koī burā na rahā 

Bahadur Shah Zafar and his words above might be a useful companion for many of our party colleagues who suffer periodic pangs of anxiety. When we do well, admittedly somewhat infrequently they take it for granted. But when we underperform, not even do badly, they are quick to bite their nails. By the looks of it there would be little of the nails left for future disappointments. Is it really a case of a bad workmen quarreling with their tools?

We are all perplexed and pained by the continuing misfortunes of our party that some have chosen to describe as our misadventures. But then there is something called faith, not necessarily blind, in our destiny. The favourite panacea of doubting Thomases, introspection and collective leadership, might do no collateral damage but is a bit over estimated. Our real redemption might be found in understanding the mind of the contemporary citizen, moulded by prevailing circumstances and influenced by a self serving potion of social envy and suspicion, if not hate, fed by the ruling establishment. If the mood of the electorate is resistant to the liberal values we have espoused and cherished we should be prepared for a long struggle rather than look for short cuts to get back into power. Being excluded from power is not to be casually embraced in public life but if it is the result of principled politics it should be accepted with honour. So the constant refrain of some persons should not be of aimless introspection but for reaffirmation of fundamental principles we believe in. If we are explicitly or implicitly willing to compromise with our principles to regain power we might as well pack up our bags. It is another matter that consolidation of our principled politics, like any cause, requires periodic re-appraisal and re-writing of strategy and logistics. But those cannot be done in the media for our adversaries to check mate it promptly.

The battle for liberal India informed by the rich heritage of India’s humanistic traditions cannot be joined by feeble hearted and those unwillingly to embrace deprivation and sacrifice. The noblest values of the freedom movement and the commitment of our Founding Fathers ( and Mothers ) stood out because of sacrifices borne in terms of life and property. Today we are asked in the words of King Lear to ‘abstain from felicity awhile’ . Let our impatience be directed at those who have sullied the humanistic ethos of the great Indian civilization rather than with self perceived impressions of just deserts. Great minds have self doubt, not the arrogance of doubting the world around themselves. That, in essence, was the message of the last Emperor of Mughal India.

अब कांग्रेसी नेता अधीर रंजन ने भी सिब्बल पर निशाना साधते हुए कहा कि कपिल सिब्बल ने इस बारे में पहले भी बात की थी।  वह कांग्रेस पार्टी और आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता के बारे में बहुत चिंतित हैं।  लेकिन हमने बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश या गुजरात के चुनावों में उनका चेहरा नहीं देखा। 

इसके पहले हरियाणा के पूर्व केबिनेट मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव ने भी सिब्बल पर सवाल उठाया और लिखा  कपिल कि  सिब्बल जी पूर्व सांसद अपनी लोकसभा की सीट दिल्ली तो बचा नहीं पाए और जो दुर्दशा कांग्रेस की दिल्ली में हुई है उसके लिए कौन जिम्मेदार है उसके बारे में भी देश की जनता को जवाब दें केवल आलोचना करने से बात नहीं बनती। अजय सिंह यादव की बात करें तो ये कांग्रेस हाईकमान से नजदीकी इसलिए दिखा रहे हैं क्यू कि कुछ महीने पहले जिन 23 बड़े  नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा था उनमे पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का भी नाम था। कैप्टन सोंच रहे होंगे कि हाईकमान की वफादारी उन्हें फायदा पहुंचा सकती है। वैसे लोग लिख रहे हैं कि कैप्टन, रंजन, खुर्शीद जैन चाटुकार कांग्रेसियों के कारण ही कांग्रेस रसातल की तरफ जा रही है। इस ट्वीट के नीचे जिस तरह का जबाब दिया गया है ऐसे ही जबाब रंजन, खुर्शीद और अशोक गहलोत को भी दिए जा रहे हैं। 

आपको बता दें कि तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ता भी चाहते हैं पार्टी आत्मचिंतन करे क्यू कि कांग्रेसी कार्यकर्ता जब रात दिन मेहनत करते हैं और लड्डू कोई और बांटने लगता है तो वो एक ही बात कहते हैं कि ऊपर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सार्वजनिक रूप से नहीं लेकिन अकेले में वो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पर ही सवाल उठाते हैं।  

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