चण्डीगढ़, 22 अक्तूबर- हरियाणा ने अपने कानूनों से पंजाब का नाम हटाने के लिए कमर कस ली है। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता द्वारा इस संबंध में प्रयास शुरू करने के बाद अब राज्य सरकार ने इसके लिए कमेटी का गठन कर दिया है।
कानून एवं विधि विभाग के लीगल रिमेम्ब्रेन्सर एवं प्रशासनिक सचिव की अध्यक्षता में गठित यह कमेटी 1968 के आदेश के अंतर्गत स्वीकृत अधिनियमों के उप-शीर्षकों के संशोधन के विषय में पुनरावलोकन एवं परीक्षण करेगी। इस कमेटी को एक माह के भीतर मुख्य सचिव को रिपोर्ट देनी होगी। राज्य सरकार ने कमेटी के गठन को लेकर हरियाणा विधान सभा सचिवालय को सूचित कर दिया है।
मुख्य सचिव श्री विजय वर्धन की ओर से जारी आदेशानुसार इस कमेटी में कानून एवं विधि विभाग के ओएसडी, राजनीति एवं संसदीय मामले विभाग के उप-सचिव और सामान्य प्रशासन विभाग के ओएसडी (नियम) बतौर सदस्य शामिल होंगे। सामान्य प्रशासन विभाग के उप-सचिव को कमेटी में सदस्य सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
विदित रहे कि हरियाणा को विरासत में जो कानून मिले थे, वे सभी पंजाब के नाम पर थे और गत 54 वर्षों से हरियाणा की शासन व्यवस्था इन्हीं कानूनों के आधार पर चल रही है। इसके चलते प्रदेश की जनता और जनप्रतिनिधि इन कानूनों को हरियाणा के नाम पर करने की मांग करते रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष श्री ज्ञान चंद गुप्ता इसे हरियाणा के स्वाभिमान का विषय मानते हैं।
हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष श्री ज्ञान चंद गुप्ता ने हरियाणा के कानूनों के नामों से पंजाब शब्द हटाने की पहल करते हुए 24 सितम्बर को विधानसभा सचिवालय में राज्य सरकार और विधानसभा सचिवालय के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। बैठक में विधानसभा अध्यक्ष ने मुख्य सचिव को निर्देश दिए थे कि प्रदेश के सभी कानून पंजाब की बजाय हरियाणा के नाम से करने की योजना तैयार करें। उस बैठक में ही कमेटी गठित करने का फैसला हुआ था। उल्लेखनीय है कि फिलहाल हरियाणा में करीब 237 ऐसे कानून हैं जो पंजाब के नाम से ही चल रहे हैं।
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत वर्ष 1966 में हरियाणा का गठन हुआ था। तब पंजाब में जिन अधिनियमों का अस्तित्व था, वे ही हरियाणा में लागू हुए थे। व्यवस्था यह बनी थी कि 1968 में हरियाणा अपनी जरूरतों के मुताबिक इनमें आवश्यक संशोधन कर सकेगा। अनावश्यक कानूनों को हटाने का अधिकार भी प्रदेश की विधानसभा को मिला।
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