नई दिल्ली- हाथरस की निर्भया को नेता पार्टी और जातिवाद से जोड़कर देख रहे हैं। कोई इसलिए कोई बयान नहीं दे रहा है कि वो सत्ताधारी पार्टी से है तो कोई जातिवाद के कारण कुछ बोलने से बच रहा है। बेटियां तो सब की एक जैसी होती हैं ऐसा नेता सिर्फ बाहर से कहते हैं। अब जाने माने कवि कुमार विश्वाश ने एक लेख फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट किया है। पढ़ें
कहते हैं गिलहरी के बदन पर दिखाए देने वाली धारियाँ, करुणावतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पावन व स्नेहिल स्पर्श का जीवंत परिणाम है ! एक गिलहरी के प्रति मनुष्यता के सबसे बड़े प्रतिमान की सजग और जीवंत संवेदना का सनातन प्रमाण हैं ! और आज? आज हमारी क़बिलाई सोच ने ये कैसा समय उपस्थित किया है कि हमारे समय की इन छोटी-छोटी, नन्ही मासूम गिलहरियों की धारियों में क्रूरतापूर्ण पाशविकता की हर अनकही बर्बरता हम देखने और सुनने के लिए विवश हैं 😢
मन तो नहीं करता कि कोई राजनीतिक टिप्पणी करूँ ! देश भी नहीं चाहता कि हम जैसे लोग राजनीति में दिखाई भी दें ! चलो ठीक है, जैसा आप सब चाहो,आप सबको आपके ये व्यभिचारी-भ्रष्टाचारी-वंशवादी-जातिवादी-धार्मिक उन्मादी नमूने मुबारक, हम तो अपने लिखने-पढ़ने के काम में हाशिए पर होकर भी तुम्हारे काम की मुख्यधारा से तो ज़्यादा ही प्रासंगिक हैं और ख़ुद से बहुत खुश भी हैं ! पर कई बार सियासत की बेशर्मी का पानी सर के इतने ऊपर चला जाता है कि मुहब्बत के कहन वाली आँखें भी लहू टपकाने की राह ढूँढने लगती हैं😡!
वोट देने या समर्थक होने का मतलब यह तो नहीं कि आत्मा और मनुष्यता को भी गिरवी रख दोगे ? अरे अगली बार फिर से वोट दे देना इन्हें ही, पर कम से कम अपनी बेटियों की लुटती अस्मत पर आँख में शोले भरकर, ऊँची आवाज़ में सवाल तो पूछो ? पार्टियों-नेताओं के भक्तो-चमचो-चिंटुओ, याद रखो ऐसी नपुंसक खामोशी बड़े-बड़े हस्तिनापुरों को लाशों के ढेर में तब्दील कर देती है😡! पहले भी हर सरकार के वक्त कहता रहा हूँ फिर कह रहा हूँ.... बाबुल की 'गुड़िया' को खिलौना समझने वालों के ख़िलाफ़ जाग जाइए, इकट्ठे हो जाइए, वरना एक दिन सबके आँगन की किलकारियाँ ख़ामोश हो जाएंगी 😢😢🙏
हाथरस की बिटिया का शाप हमारे-आपके इस घोर नीच समय के सर पर है ! बच्चियाँ अभी भी उसी हाल में है ! राजनैतिक पार्टियों के नेतागण बिहार में बिजी है, देश का चौथा खम्भा अवसरवादी फ़र्ज़ी नायकों व राजविदूषकों के यहाँ चरस की पुड़िया ढूँढने में बिजी है ! सभ्यता के पतन का मार्ग इन दिनों GDP की तरह ईज़ी है 👎 अब तो ईश्वर ही कोई राह दिखाए 😢🙏 उप्र में तो जैसे मानवता, प्रशासन, नैतिकता, व्यवस्था, क़ानून व पुलिस सबने ही ज़िम्मेदारियों को अंतिम प्रणाम सा कर दिया है😳👎! गुड़िया जैसी मासूम बेटियों के लिए हमारा समय, हमारा इस दौर का देश शायद बना ही नहीं है ! या हम इतनी मासूम बेटियाँ डिजर्व ही नहीं करते हैं 😢👎 देखते-देखते पूरा समाज कबीले में बदल रहा है ! पता नहीं ग़ुस्से में हूँ या दुख में, पर बड़ा बेबस सा अनुभव कर रहा हूँ😢 लग रहा है राजनीति के रास्ते से नहीं, समाज का पानी बदलने से ही शायद कुछ होगा ! सारा पानी ही सड़ सा गया है ! उलीच फेंकना होगा समाज के मानसरोवर में जम गए इस बदबूदार गँदले पानी को😡👎
“मौन ओढ़े हैं सभी दुश्वारियाँ होंगी ज़रूर
राख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर
आज भी आदम की बेटी हण्टरों की ज़द में है
हर गिलहरी के बदन पर धारियाँ होंगी ज़रूर.!”😢
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