फरीदाबाद: शहर में एक दो नहीं हजारों आवारा पशु हैं और वर्तमान में अधिकतर पशुओं का हाल बेहाल है। जिले में तमाम गौशालाएं है लेकिन सभी पशु इन गौशालाओं तक नहीं पहुँच सके हैं। तमाम सड़कों पर घुमते रहते हैं। फरीदाबाद के शहरी इलाकों में तो तमाम पशु कूड़ा, सब्जिओं के फेंके छिलके और फलों के छिलके खाकर अपना गुजारा कर लेते हैं और कुछ नहीं मिलता तो मजबूरन कूड़े या पोलोथीन तक खा लेते हैं भले ही पोलोथीन उन्हें नुक्सान पहुंचाए। जो पशु शहर से थोड़ी दूर हैं और जहां कोई बस्ती नहीं है वो बहुत ही परेशान हैं। फरीदाबाद के अरावली का वन क्षेत्र जहां ऊपर कीकड़ के पेड़ और नीचे पत्थर हैं। वन क्षेत्र में घास कहीं दिखाई नहीं पड़ती और यहाँ भी सैकड़ों पशु रहते हैं। अब ये हद से ज्यादा भूखे लगते हैं क्यू कि कोई भूल से भी सड़क पर अपनी कार रोक देता है तो ये बेजुबान समझते हैं कि हमारे लिए कोई भोजन या चारा लेकर आया है। ये बेतहाशा गाड़ियों की तरफ भागते हैं और गाड़ी को चारों तरफ से घेर लेते हैं ठीक वैसे जैसे लॉकडाउन के दौरान किसी स्लम बस्ती में कोई राशन लेकर पहुँचता है तो वहां के सैकड़ों गरीब उस व्यक्ति को घेर लेते हैं और खतरे हैं बाबूजी हमें राशन दे दो।
फरीदाबाद -सूरजकुंड रोड, सूरजकुंड पाली रोड पर आप ऐसा देख सकते हैं। शायद कुछ लोग इन्हे भोजन पहुंचा रहे हैं तभी ये हर उस वाहन वाले को देख समझते हैं कि ये साहब भी हमारे लिए भोजन लेकर पहुंचे हैं। आप सूरजकुंड रोड पर ये नजारा देख सकते हैं। आपकी गाड़ी रुकते ही तमाम गायें आपकी तरफ भागेंगी और आपकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर लेंगी। ये बेजुबान भले कुछ न बोल सकें लेकिन आप समझ जाएंगे कि ये गायें हमसे भोजन या चारे की उम्मीद में हमारे पास आईं हैं और अगर आप इनके लिए कुछ लेकर नहीं गए और किसी कारण वश आपने गाड़ी रोकी या आप किसी और काम से उधर गए थे तो इन्हे अपने पास आते देख आपका दिल बहुत दुखी होगा। इन जानवरों का दर्द इंसान से ज्यादा और कई नहीं समझ सकता। हो सके तो अगर आप उधर जाएँ तो खाली हाथ न जाएँ। कुछ न कुछ लेकर जाएँ। अगर आप किसी अन्य काम से उस सड़क पर गए हैं और खाली हाथ हैं तो अपनी कार सड़क पर न रोकें वरना जब ये बेजुबान आपको घेर लेंगी तो आपको बहुत पछतावा होगा।
आज हम उधर से गुजर रहे थे। कुछ गरीबों ने राशन घोटाले की सूचना दी थी। साथ में भाजपा नेता कैलाश बैसला थे और हम बैसला से सिद्धदाता आश्रम के पास मिले और उन्होंने जैसे कार रोकी वहां दर्जनों गायें आ गईं। कैलाश बैसला ने बताया कि इस रास्ते से मैं जब भी गुजरता हूँ इन गायों के लिए कुछ न कुछ लेकर आता हूँ लेकिन आज शाम दयालनगर अचानक आना पड़ा। गाड़ी रोकते ही दर्जनों गायें आ गईं क्यू कि इन्हे पता है कि लगभग सवा महीने से मैं इनके लिए कुछ न कुछ लेकर आता था। कैलाश बैसला ने बताया कि ये गायें बोल नहीं सकती हैं लेकिन इंसान को पहचानती हैं और हम इंसानों को भी इनका दर्द समझना चाहिए। उन्होंने फरीदाबाद के लोगों से अपील की कि इनका भी ध्यान रखें।
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