नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में आज कुछ भी हो सकता है। आज यानी 10 मार्च को माधवराव सिंधिया की 75वीं की जयंती है। ऐसे में चर्चा ये भी है कि क्या इस खास दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया कोई बड़ा ऐलान करेंगे? इसके पहले कल रात्रि भर ड्रामा चला। कहा जा रहा था कि सिंधिया पीएम मोदी से मिलने जा रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाजपा भी फूंक-फूंक करे कदम रख रही है। ऐसा इसलिए क्यू कि महाराष्ट्र में अजीत पंवार भाजपा के साथ बड़ा खेल खेल चुके हैं।
कहा जा रहा है कि सिंधिया और भाजपा नेताओं में गुफ्तगू जारी है और अगर सिंधिया भाजपा के साथ आते हैं तो उनका राज्यसभा पहुंचना तय है। उन्हें राज्य सभा भेजने का वादा कांग्रेस भी कर सकती है लेकिन कांग्रेस उन्हें केंद्र में मंत्री पद नहीं दे सकती है जबकि भाजपा ऐसा कर सकती है।
सूत्रों का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रबल दावेदार होने के बावजूद मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने के बाद से ज्योतिरादित्य सिंधिया बाद में प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे, मगर दिग्विजय सिंह के रोड़े अटकाने के कारण नहीं बन पाए। फिर उन्हें लगा कि पार्टी आगे राज्यसभा भेजेगी, मगर इस राह में भी दिग्विजय सिंह ने मुश्किलें खड़ीं कर दीं. पार्टी में लगातार उपेक्षा होते देख सिंधिया ने बीजेपी के कुछ नेताओं से भी संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में बीते 21 जनवरी को शिवराज सिंह चौहान और सिंधिया की करीब एक घंटे तक मुलाकात चली थी. उसी दौरान सिंधिया के बीजेपी से नजदीकियां बढ़ने की चर्चा चली थी।
कल सिंधिया समर्थक लगभग डेढ़ दर्जन विधायक कर्नाटक पहुंचे जिसके बाद राजनीतिक हलचल शुरू हो गई। कई बड़े कांग्रेसी नेताओं ने उनसे संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन संपर्क नहीं हो सका ,दिग्विजय सिंह ने भी उनसे संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन कामयाब नहीं हो सके जिसके बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि सिंधिया को स्वयं फ़्लू हो गया है। उनसे संपर्क नहीं हो रहा है।
आपको बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। हालांकि, अब कहा जा रहा है कि वह अपनी दादी विजयराजे सिंधिया के सपने को साकार कर देंगे। जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी में रहे।
विजयराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा। खुद विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने थे। वो ज्यादा समय तक जनसंघ में नहीं रुके और 1977 में माँ से अलग हो गए थे।
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