नई दिल्ली: 15 दिसंबर से ये दिल्ली के शाहीन बाग़ की सड़क पर बैठे और लगभग 100 दिन बाद जबरन भगाये गए लेकिन देश का क़ानून को शायद सच में कुछ दिखाई नहीं देता। इन लोगों पर कोई एफआईआर नहीं हुई जबकि देश के लाखों ऐसे लोगों पर एफआईआर हुईं हैं जिन्होंने किसी सड़क को एक घंटे तक भी जाम किया था। इनका हौसला अंधे क़ानून ने बढ़ाया इसलिए ये दिल्ली पुलिस की बात न मान निजामुद्दीन के मकराज में इकठ्ठा हुए। अंधे क़ानून के कारण शाहीन बाग़ वालों ने सवा तीन महीने लाखों को रुलाया क्यू कि कई लाख लोगों का मुख्य मार्ग बंद था और काफी घूमकर जाना पड़ता था। अगर शाहीन बाग़ में कानून ने अपना काम ईमानदारी से किया होता तो निजामुद्दीन के मकराज में इतने लोग इकठ्ठा न होते।
मकरज में इकठ्ठा हुए लोगों में से कइयों की जान जा चुकी है और सैकड़ों कोरोना संक्रमित हैं। सबसे ज्यादा यहाँ तेलांगना के लोग आये थे। तेलंगाना सरकार का अनुमान है कि प्रदेश से करीब 1000 लोगों ने निजामुद्दीन में जमात में हिस्सा लिया था। इसी तरह हिमाचल प्रदेश सरकार ने ऐसे 17 लोगों को चिह्नित किया है। यूपी में भी कम से कम 19 जिलों से लोग जमात में हिस्सा लेने आए थे। सभी की जाँच चल रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया कि अब तक देशभर में ऐसे 2,137 लोगों की पहचान की जा चुकी है। इन लोगों की मेडिकल जांच की जा रही है और इन्हें क्वारंटीन में रखा गया है। गृह मंत्रालय के मुताबिक ऐसे अभी और लोगों की पहचान की जा रही है। मध्य प्रदेश के लगभग 100 लोग इस जमात में शामिल हुए थे। सीएम शिवराज चौहान ने सभी के जांच के आदेश दिए हैं।
सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि देश में कोरोना जिहाद चल रहा है। ये सब केंद्र की मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए हो रहा है और ज्यादा से ज्यादा लोगों की मौत होने का इन्तजार है। इसके पीछे वामपंथी मीडिया, टुकड़े गैंग, अर्बन नक्सली, जेहादी सहित कई गैंग का हाथ है। लगता भी यही है। अर्बन नक्सलियों के ट्वीट्स देख लगता है सच में वो? आपको बता दें कि ये अर्बन नक्सली हाल में दिल्ली में दंगा करवा 53 लोगों की जान ले चुके हैं। मरने वाले हर धर्म के लोग थे लेकिन इन हरामियों को लाशें गिनने से मतलब है। ये हरामखोर अब भी तमाम लाशें देखना चाहते हैं। निजामुद्दीन कांड में मुस्लिम समाज के लोगों की मौत कोरोना से हो रही है। ये हरामखोर यहां भी लाशें ही गिन रहें हैं ताकि केंद्र सरकार को घेर सकें। ये हरामी किसी के सगे नहीं हैं। इन्हे सिर्फ लाशें चाहिए ताकि ये अपना धंधा चमका सकें। ये कुत्ते मुस्लिम समाज के लोगो को भड़काकर उनकी ही जान ले रहे हैं। इस समाज में ज्यादा अनपढ़ हैं इनके बहलाने में आ जाते हैं। ये हरामखोर देश के मुस्लिमों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन्हे इसके लिए मोटा माल भी मिल रहा है। देश के मुस्लिम समाज के लोग इन कुत्तों को समझ नहीं पा रहे हैं क्यू कि समाज के अधिकतर लोग अनपढ़ हैं, समाज के युवा तो सब समझ रहे हैं लेकिन तमाम मस्जिदों में अनपढ़ मौलवी बैठे हैं। ये एक कड़वा सत्य है। जिस पाठक को कड़वा लगे वो आज मिर्ची न खाये। और कभी न खाये, सत्य समझ में आ जायेगा।
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