नई दिल्ली: जामिया के पत्थरबाजों को बचाने के लिए अब जामिया को-ऑर्डिनेशन कमिटी नए-नए तर्क दे रही है। कभी कह रही है कि छात्रों के हांथों में पत्थर नहीं पर्स थे तो कभी कह रही है कि पुलिस से बचने के लिए छात्रों ने हाथों में पत्थर लिए थे। कमिटी का कहना है कि लाइब्रेरी में बैठने के वक्त छात्र अपना पर्स बाहर निकाल लेते हैं। उनके हांथों में पर्स को पत्थर बताया जा रहा है। एक तरफ कमिटी का ये भी कहना है कि पुलिस आंसू गैस छोड़ रही थी जिस वजह से छात्रों ने मुँह पर कपडे बाँध लिए। अगर उस वक्त आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे थे तो आप सोंचें कि ऐसे मौके पर लोग बचने का प्रयास करेंगे न कि पढ़ाई करने बैठ जाएंगे। जब बाहर हुड़दंग और पत्थरबाजी हो रही हो, आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हो ऐसे मौके पर शायद ही किसी का पढाई में दिमाग लगे।
कमिटी के तर्क को देख लगता है कि कमिटी अपने पत्थरबाजों को बचाने के लिए पुलिस पर तरह-तरह के आरोप लगा रही है। पुलिस द्वारा जारी किये गए वीडियो को फर्जी बता रही है जबकि कमिटी ने पहले अधूरा वीडियो जारी किया था लेकिन पुलिस ने कई वीडियो जारी कर कमिटी के मंसूबों पर पानी फेर दिया। कमिटी के लोग अपने बचाव के लिए हर प्रयास कर रहे हैं लेकिन लगता नहीं कि ये सच छुपा सकेंगे। लाइब्रेरी के छात्रों ने ही पुलिस पर पत्थरबाजी की थी और हो सकता है जामिया हिंसा में भी यही शामिल रहे हों। हिंसा के बाद ये भागकर लाइब्रेरी में छुपे थे और इनका पीछा करते हुए पुलिस लाइब्रेरी में पहुँची थी। सच यही लगता है। पूरा टुकड़े गैंग फिर पुलिस को खलनायक बताने में जुट गया है लेकिन ऐसा शायद ही संभव हो सके क्यू कि जनता पुलिस के साथ है।
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