नई दिल्ली: देश को टुकड़े-टुकड़े करने का इरादा रखने वालों के मंसूबे शायद उतनी जल्दी नहीं पूरे होंगे। हाल में देश में जो बवाल हुआ और हो रहा है इसकी पटकथा किसी ने लिखी है और ठीक वैसा देखने को भी मिल रहा है। केंद्र में मजबूत सरकार देख कुछ लोग बौखलाए हुए हैं। केंद्र की मजबूत सरकार सबसे ज्यादा पड़ोसी देश पाकिस्तान को खल रही है। दुनिया पर में कई बार उसकी बेज्जती हो चुकी है। देश में जो बवाल मचा रहे हैं वो किसी का मोहरा बने हुए हैं।
जेएनयू की पटकथा भी किसी ने लिखी है। वामपंथी छात्र उस पटकथा की किताब के पन्ने हैं। जेएनयू की बात करें तो इस यूनिवर्सिटी से पाकिस्तान का खास लगाव है और वो यहाँ अपने तमाम संपोलों को पालता है जो यहाँ कम फीस पर रहते हैं और पढाई करते हैं और देश विरोधी हरकतों में इन संपोलों का अहम् योगदान रहता है। शायद यही कारण है कि पाकिस्तान भी जेएनयू के समर्थन में खड़ा हो गया है। लाहौर में बुधवार को स्टूडेंट और टीचर रैली निकालेंगे। लाहौर प्रेस क्लब से निकलने वाली इस रैली में कई यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट शामिल हो सकते हैं।
भारत की बात करें तो यहाँ की कुछ पार्टियों को सत्ता चाहिए। सत्ता के लिए उन्हें पाकिस्तान का साथ लेना पड़े तो परहेज नहीं करेंगी। यही तो सैकड़ों साल पहले हुआ था जब देश पर कई छोटे-छोटे देशों ने राज किया था। तोड़ो-फोटो और राज करो, उस समय तमाम रियासतों को आपस में लड़ाकर देश पर मुगलों एवं अन्य ने राज किया था और अब रियासतों की जगह देश में कई राजनैतिक दल हैं जिन्हे तोड़कर देश पर राज करने का सपना देखा जा रहा है।
बात करते हैं वामपंथियों की तो हरियाणा अब तक को इनके बारे में जहाँ जानकारी है उसके मुताबिक कम्यूनिस्टॊं का तो इतिहास ही खून से लथपथ रहा है। वामपंथी विचारधारा भी किसी जिहाद से कम नहीं। ये लोग लाल आतंकी है जो देश को टुकडॊं में बांट कर अपने रक्त रंजित इतिहास को खून की स्याही से लिखना चाहते हैं। पहली कम्युनिस्ट क्रांति के बाद सोवियत संघ के पहले शासक बने लेनिन और स्टालिन इन कम्युनिस्टों के मन पसंद नेता है। लेनिन और स्टालिन मानवता के नाम पर कलंक है। यह वही लोग हैं जिनके हाथ लाखों मासूम लोगों के खून से रंगे हुए हैं जिसने सोवियत संघ को विशाल यातनाघर बना दिया था। इन्ही तानाशाह के पुजारी हैं भारत के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट नेता गण और जेएनयू के संपोले जिन्हे देश की कई फ़िल्मी हस्तियों और कई पार्टियों के नेताओं का साथ मिल रहा है।
जब भी देश की अस्मिता और सुरक्षा की बात आती है यह कम्युनिस्ट अपनी गद्दारी दिखाते हैं और अपना समर्थन चीन को दे देतें हैं। ये वही गद्दार है जिन्होने 1942 में ब्रिटिश सरकार को अपना समर्थन दिया था और क्विट इंडिया आंदोलन को विफल बनाया था। CIA दस्तावेज़ों के अनुसार 1962 के भारत-चीन युद्द के दौरान कम्युनिस्टों ने चीन का साथ दिया था। रूस और चीन के कहने पर कम्युनिस्ट नेता एच के सुर्जीत भारतीय सेना में अपने खूफिया संगठन तैनात करने को राज़ी हो गये थे। इस संगठन का उद्देश था भारतीय सेना के विरुद्ध काम करना और युद्द के दौरान चीन की सहायता करना। भारतीय सैन्य बलों के प्रवेश को रोकने के लिए चीन- रूस ने जोर देकर कहा था कि सीपीआई को सशस्त्र प्रतिरोध करने में सक्षम एक स्टैंडबाय उपकरण विकसित करना होगा, जिसके लिए भारत के सीपीआई नेता तुरंत तयार हॊ गये।
गद्दारी इनके खून में है।1962 के युद्द में भारत के विरुद्द भारतीय सेना में सीपीआई अपना खूफिया संगठन तैनात करने को राजी हो जाती है। जिसने देश से गद्दारी की आज वही पार्टी दूसरॊं को देश प्रेम का पाठ पढ़ाती है। जेएनयू में वामपंथी छात्रों की संख्या ज्यादा है और ये हमेशा वहां बवाल करते हैं। इनके अगुआई में भी भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगते हैं। नेता सत्ता के लिए इन संपोलों का साथ देते हैं जो देश के लिए घातक हैं। रविवार को जो कुछ हुआ था उसकी शुरुआत वामपंथियों ने ही की थी लेकिन बकरे की माँ कब तक खैर बनाएगी। कोई न कोई तो इन संपोलों का फन कुचलेगा।
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