नई दिल्ली: एक पुरानी कहवत है कि जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि इसका उदाहरण हम आपको पुराने कवियों की कुछ लाइनों से दे रहे हैं। ट्विटर पर दुष्यंत कुमार के पेज पर कुछ कवितायें पोस्ट की गईं हैं जो कवितायेँ पुराने लेखकों की हैं लेकिन आज के माहौल में सत्य साबित हो रही हैं। लिखा गया है कि
औरतों पर कुक्करों सा आदमी का जूझना
आज भी सच है,सितारों पर भले चढ़ जाईये
अब सुना है जंगलों में शेर का है खौफ़ कम
शहर में लेकिन बिना बन्दूक के मत जाईये
~विप्लवी जी
कविता शुद्ध हिंदी में है। अर्थ आप लोग समझ गए होंगे कि इस युग में इंसान चाँद पर चढ़ जा रहा है लेकिन कुछ इंसान महिलाओं को??? कुक्कुरों का अर्थ कुत्ते,,,जंगल में शेर का उतना खौफ नहीं है जितना शहर में है और शहर में बिना बन्दूक के चलना मुश्किल हो गया है। कब कौन लुटजाये , पिट जाये या हत्या कर दी जाए कोई पता नहीं है।
एक और कविता में लिखा गया है कि
ज्यों लूट ले कहार ही दुलहिन की पालकी,
हालत यही है आजकल हिन्दोस्तान की ।
- गोपालदास `नीरज’
ये कविता भी शुद्ध हिंदी में ही है लेकिन वर्तमान पीढ़ी शायद ही जानती हो कि पालकी क्या होती है और कहार और पालकी का क्या सम्बन्ध है। देश में लगभग चार दशक पहले जब शादियां होतीं थीं तब दुल्हन की विदाई पालकी में होती थी और उस पालकी को कहार अपने कंधे पर रखकर दूल्हे के घर तक पहुंचाते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में उस समय सड़कें वगैरा नहीं होती थीं। टेड़े-मेढ़े रास्ते नदी नाले पार करते हुए कहार वो पाली गंतव्य तक पहुंचाते थे। पाली एक छोटी कोठरी के सामान होती थी। चारों तरफ से ढकी होती थी। दुल्हन उसमे बैठती थी। लेकिन कभी कभार उस समय में कहार किसी पालकी को लूट लेते थे लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता था।
आधुनिक युग में आने जाने के तमाम साधन हो गए हैं लेकिन कभी कार में किसी महिला की इज्जत लूट ली जाती है तो कभी बस में, आधुनिक युग में बारदातें भी आधुनिक हो गईं हैं। तस्वीर -स्वर्गीय गोपालदास `नीरज’ जाने मानें कवि
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