नई दिल्ली: कई राज्यों में हार का ठीकरा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व पर फोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व के अड़ियल रवैये से भाजपा को एक साल में पांच राज्य गंवाने पड़े। जनता की नाराजगी के बाद भी केंद्रीय नेतृत्व ने कमजोर नेताओं को मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी पर बिठा दिया। एक तरह से जनता पर इन्हे थोप दिया गया और जनता ने ऐसे नेताओं को आइना दिखा दिया। हरियाणा में भले ही इस बार जजपा के साथ मिलकर सरकार बन गई हो लेकिन खट्टर को प्रदेश की जनता मुख्य्मंत्री के रूप में पसंद नहीं करती। पिछले कार्यकाल में कई बार हरियाणा में आग लगी थी लेकिन फिर भी मोदी शाह ने इन्हे जनता पर थोप दिया जबकि ये बहुत बड़े नेता नहीं थे। 2014 में विधायक बने और सीएम बना दिए गए। जो कई बार प्रदेश के विधायक या सांसद रह चुके हैं उन्हें नजरअंदाज किया गया।
मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी ने मराठों के दबदबे वाले राज्य में ब्राह्मण समुदाय के देवेंद्र फडणवीस, जाट बहुल हरियाणा में पंजाबी मनोहर लाल खट्टर, पाटीदारों के वर्चस्व वाले गुजरात में सिंधी विजय रूपानी और आदिवासी बहुल झारखंड में ओबीसी रघुबर दास जैसे नेता चुने। इन्हें बड़ा नेता होने की वजह से नहीं बल्कि केंद्रीय नेतृत्व की निकटता की वजह से मुख्यमंत्री बनाया गया।
इन राज्यों में भाजपा को सत्ता मोदी के नाम पर मिली थी। केंद्रीय नेतृत्व ने जैसे ही इन मुख्यमंत्रियों के कंधे पर हाथ रखा, इन्होंने अपनी जाति के नेताओं अधिकारीयों को भाव देना शुरू कर दिया और अन्य बड़े नेताओं के पंख कतरने शुरू कर दिए क्योंकि ये उनको अपने पद के लिए खतरा मानते थे। इन मुख्यमंत्रियों के कामकाज के कारण इनके प्रदेशों में गुटबाजी बढ़ती गई। केंद्रीय नेतृत्व कुछ नहीं समझ पाया और अब हाल बेहाल हो गए। राजस्थान में भी लोग वसुंधरा से नाराज थे लेकिन उन्हें फिर थोप दिया गया और वहाँ भी सरकार चली गई। कई हारों के बाद भाजपा शायद अब सबक लेगी और जनता पर कमजोर मुख्य्मंत्री थोपने का काम नहीं करेगी।
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