नई दिल्ली: राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मोदी सरकार की उलटी गिनती अब शुरू हो गई है। कांग्रेस भाजपा के किलों में अब धीरे-धीरे सेंध लगाने लगी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के बाद हरियाणा भी भाजपा से जाते जाते बचा तो माहाराष्ट्र में भी भाजपा का प्रदर्शन पहले से कमजोर रहा। लोकसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन भले ही अच्छा रहा लेकिन उसके बाद हुए हरियाणा और माहाराष्ट्र चुनावों में जनता ने उस तरह से भाजपा का साथ नहीं दिया जिस तरह से लोकसभा चुनावों में दिया था जिसे देख लगता है कि राज्य सरकारें अपना काम काज ठीक से नहीं कर रही हैं।इन राज्यों में लचर प्रदर्शन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टेंशन बढ़ा दी है। 2014 में हरियाणा में जब भाजपा की सरकार बनी थी तक मनोहर लाल के शपथ ग्रहण समारोह में शपथग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हुए थे लेकिन इस बार फ़टाफ़ट शपथ ली गई और पीएम मोदी ने शपथ ग्रहण से दूरी बनाई।
अब चर्चे हैं कि आखिर पीएम क्यू शपथ ग्रहण में शामिल नहीं हुए । कुछ लोगों का कहना है कि दीवाली पर पीएम सेना के जवानों से मिलने जम्मू-कश्मीर के राजौरी गए गए थे इसलिए वो शपथ ग्रहण में नहीं पहुंचे तो कुछ लोगों का कहना है कि पीएम ने इस शपथ ग्रहण समारोह से किनारा किया और ये शपथ ग्रहण एक दिन बाद भी हो सकता था लेकिन फटाफट ये कार्यक्रम इसलिए आयोजित किया गया ताकि कांग्रेस का तोडफोड़ विभाग के मंसूबे कहीं पूरे न हो जाएँ। चर्चाएं हैं कि अगर भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहता और पूर्ण बहुमत मिलती तो पीएम शपथ ग्रहण में शामिल होते। भाजपा को बहुमत नहीं मिला और जजपा के सामने घुटने टेकने पड़े और इसलिए पीएम ने शपथ ग्रहण से दूरी बनाई।
भाजपा की बात करें तो पार्टी गलत राह पर चल रही है। अच्छा काम करने वाले नेताओं को दरकिनार किया जाता है जबकि पार्टी का भट्ठा बैठाने वालों को सत्ता की कुर्सी पर बिठाया जाता है। जिनके परिवार के लोग भ्रष्टाचार के आरोप में जेलों में बंद हैं पार्टी उन्हें अपने साथ लेती है और सरकार में शामिल करती है। हरियाणा में और भी पुराने भाजपा नेता हैं लेकिन फिर मनोहर लाल पर भी भरोषा क्यू जताया गया। जल्द दिल्ली और झारखंड में विधानसभा चुनाव हैं और दिल्ली की बात करें तो भाजपा शायद ही केजरीवाल से सत्ता छीन सके। भाजपा को मनन करने की जरूरत है कि आखिर क्यू राज्यों में पार्टी का हाल बेहाल होता जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सत्ता का घमंड अब भाजपा पर भारी पड़ रहा है। जनता अब जागरूक होने लगी है और राज्यों में स्थानीय मुद्दे चलते हैं।
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