फरीदाबाद: दीपावली को लेकर शहर के आसमान पर आतिशबाजी जारी है। शहर के व्यापारियों की मानें तो इस बार अधिकतर व्यापारियों का काम लगभग चौपट हो गया। गिफ्ट शाप लगाने वाले अधिकतर व्यापारी इस साल कुछ नहीं कमा पाए। मिठाई विक्रेताओं का व्यापार भी कोई ख़ास नहीं रहा। कुछ व्यापारी इसका कारण महीने का अंतिम सप्ताह बता रहे है तो कुछ मंदी बता रहे हैं। शहर के कई वर्षों बाद आज पहली बार देखा गया कि शहर के खम्भे खामोश हैं। दीवाली की बधाई देने वाले नेताओं ने इस बार न के बराबर होर्डिंग्स लगवाए। शहर के खम्भों पर ढूंढें से भी नेताओं के होर्डिंग्स नहीं मिल रहे हैं। इसका कारण है हाल में विधानसभा चुनाव दीवाली से पहले हो गया और शहर के कई बड़े नेताओं का दीवाला निकल गया।
चतुर चालाक जनता ने जिससे ज्यादा खाया उसे वोट नहीं दिया। कई पार्टियों के नेताओं को ठेकेदार ले डूबे। कुछ ठेकेदार मालामाल हो गए। शहर के कई नेताओं ने अपनी जमीन जायदाद बेंच चुनाव लड़ा था और कइयों को हार मिली जिस कारण कई नेता बहुत दुखी भी हैं क्यू कि ठेकदारों ने उन्हें जिताने का आश्वाशन दिया था जो संभव नहीं हुआ। ये नेता भी ठेकेदारों को समझ नहीं सके और उनके बहकावे में आ गए। टिकट वितरण के बाद बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों के पास ज्यादा समय नहीं था इसलिए उन्होंने ठेकेदारों पर भरोषा जताया जो उन्हें ले डूबे। शहर की अधिकतर सीटें भाजपा के खाते में गई जिस कारण शहर के चौराहे आज खाली हैं और दीवाली के होर्डिंग्स नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस के नेता अगर ज्यादा सीटों पर जीतते तो बात ही कुछ और होती। सच कड़वा होता है लेकिन सच यही है कि शहर में बड़ा दिल कांग्रेसी नेताओं के पास ही है।
भाजपा नेताओं को लेना आता है देना शायद उन्होंने सीखा नहीं है। आज भाजपा के तमाम कार्यकर्ता उन नेताओं के फोन को तरसते हैं जिन्होंने चुनाव जीता है और भाजपा के मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि कम से कम एक डिब्बा मिठाई जरूर मिलेगी लेकिन उनके सपने चकनाचूर हो गए। जीतने वाले नेताओं ने अपने अधिकतर कार्यकर्ताओं को भाव नहीं दिया। वो अपना दर्द किसी से बयां भी नहीं कर रहे हैं। इतना कह रहे हैं कि हमें अपने नेताओं से कम से कम एक डिब्बा मिठाई की उम्मीद थी हम जैसे मीडिया वालों से अपना दुखड़ा जाहिर कर रहे हैं। मीडिया के लोग भी कांग्रेसी नेताओं को याद कर रहे हैं , अवतार सिंह भड़ाना का वो समय याद कर रहे हैं जब वो सांसद थे और मीडिया को कम से कम दीवाली पर जरूर याद करते थे। महेंद्र प्रताप सिंह, को याद कर रहे हैं जब वो मंत्री थे। समय बदलता जा रहा है। सत्ता मिलने के बाद नेताओं में घमंड आ जा रहा है जो कभी न कभी इनके लिए घातक होगा। कार्यकर्ताओं के बिना कोई पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती लेकिन जब कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जाएगा तो कभी न कभी घमंडी नेताओं का भी बुरा दिन आएगा।
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