सन्तोष सैनी: झज्जर, 28 सितम्बर। देश में माता-पिता पेट काट कर, कर्ज लेकर, लाखों की फीस भरके बच्चों को इंजीनियरिंग, मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाते हैं लेकिन ऐसे कई कॉलेज देश में अधूरे संसाधनों यानी पढ़ाने को शिक्षक नहीं, सिखाने को लैब-मरीज नहीं हैं। ऐसे अधूरे कॉलेज पूरी फीस की लूट को अंजाम देते हैं। यह बहुत विडम्बना की बात है कि एक तरफ तो देश के प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं की अपार सफलता दम भरते हैं और दूसरी ओर देश के भावी डाक्टर सड़कों पर धक्के खाने को मजबूर हैं।
एक तरफ सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देती है, वही ये सरकार बेटियों को पढ़ा तो पा रही नहीं। और तो और उनको रिक्शा चलाने पर मजबूर भी कर रही है। देश की जनता इस वक्त सोचने को मजबूर है कि जिन डाक्टरों को इस वक्त अस्पताल में हमारा मर्ज ठीक करना चाहिए, वे आज सड़कों पर हमारे चरणों में पड़े हैं। देश की जनता इसके लिए सरकार को सबक अवश्य सिखाएगी। शायद जनता की आवाज से ही इस व्यवस्था, सरकारों के कान और आंख खुलेगी।
पिछले करीब 4 सप्ताह से मांगों को लेकर झज्जर के श्रीराम शर्मा पार्क में धरने पर बैठे गिरावड़ वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों ने विरोध प्रदर्शन किया और झज्जर के बस अड्डे पर यात्रियों के जूते पालिश के अलावा हॉकर की तरह पानी, कोल्ड ड्रिंक्स बेच तथा नुक्कड़ सभा कर आक्रोश जताया। यहां अम्बेड़कर चौक पर नुक्कड़ नाटक कर आंदोलनरत छात्र-छात्राओं ने वहां से गुजरने वाले हर शख्स को अपने साथ हो रहे अपने साथ हो रहे अत्यचार की आपबीती सुनाई।
इस दौरान उन्होंने कॉलेज प्रबन्धन के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की। आंदोलनरत छात्र-छात्राओं का कहना था कि वह पिछले एक माह से अपनी समस्या के समाधान के लिए हरियाणा सरकार के संतरी से लेकर मंत्री तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं लेकिन उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ।
उनका कहना था कि कॉलेज प्रबन्धन अपनी हठधर्मिता पर आमादा है और सरकार के प्रतिनिधि उनसे सांठ-गांठ कर रहे है। उन्होंने यह भी कहा कि वह देश के राष्ट्रपति, सुप्रीम कोई के चीफ जस्टिस, राज्यपाल, मानवाधिकार आयोग, मुख्यमंत्री तक को मेल भेजकर उन्हें इच्छामृत्यू की इजाजत दिए जाने की गुहार लगा चुके है लेकिन न तो उन्हें इच्छा मृत्यु की इजाजत ही मिल रही है और न ही उनकी समस्या का समाधान ही हो पा रहा है।
वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज के छात्र दीपांश ने बताया कि मेडिकल के विद्यार्थियों ने ई-रिक्शा चला कर सवारियां भी ढ़ोई। झज्जर के बस अड्डे पर यात्रियों के जूते पालिश के अलावा हॉकर की तरह पानी व कोल्ड ड्रिंक्स बेचकर आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि इसका मकसद सिर्फ एक था कि हमारे माता पिता ने हमारा डाक्टर बनने का सपना देखा था। हमारा कैरियर आदि सब कुछ खत्म हो चुका है। प्रति विद्यार्थी 30 से 35 लाख रुपए शुल्क व फीस के रूप में कॉलेज प्रबंधन को दे चुके हैं। एमसीआई ने एक बार भी कालेज को एप्रूव नहीं किया है।
वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज के छात्र ने कहा कि हमारे साथ विश्वासघात हुआ है। हमारा वर्ष 2016 में एडमिशन हुआ था। कालेज ने एमसीआई का एक भी इंस्पैक्शन पास नहीं किया है। एमबीबीएस में 3 साल गुजारने के बावजूद वे सिर्फ दस जमा दो के छात्र बन कर रह गए हैं। हमें धरने पर बैठे एक महीना होने को आया है और सरकार अभी तक चुप बैठी है। क्या सरकार को हमारी ज़रुरत नहीं ?
आज हमने अम्बेडकर चौक पर एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। जिसमें हमने अपनी आप बीती प्रकट की की कि किस प्रकार सरकार ने हमें एक प्राइवेट संस्थान में दाखिला दिला कर उसकी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया। यह बहुत सोचने का विषय है कि हमारी व्यवस्था किस प्रकार से डाक्टर उत्पन्न करेगी, जब मौजूदा छात्र जो डाक्टरी का सपना देख रहे हैं, वो सड़कों पर जूते साफ करने को मजबूर हैं।
विद्यार्थियों ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाया और मेडिकल कॉलेज प्रशासन की मनमानी व तानाशाही के खिलाफ नाराजगी जताई। विद्यार्थियों ने कहा कि लाखों रुपए प्रति छात्र फीस व अन्य शुल्क के रूप में मेडिकल प्रबंधकों को दे चुके हैं लेकिन कॉलेज में पढ़ाने के लिए न तो विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, न डॉक्टर की डिग्री मिलने की कोई उम्मीद है। ऐसे में लाखों रूपये व कीमती समय खर्च करने के बाद भी आज अनपढ़ मजदूर जैसे ही हैं।
उनका कहना था कि हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज कहते हैं कि हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। हम वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज के छात्र मीडिया के माध्यम से एक बात जन-जन को पहुंचाना चाहते हैं कि कोई भी कॉलेज खुलने से पहले राज्य सरकार उसमें दाखिल हुए छात्रों की जिम्मेदारी लेने का घोषणा पत्र भारत सरकार को देती है, उसे एस्सनैल्टी सर्टिफिकेट कहते हैं। परंतु हरियाणा सरकार पिछले 3 साल से अपनी जिम्मेदारियों से भागती आ रही है।
विद्यार्थियों का कहना है कि वर्ष 2016 में झज्जर की गिरावड स्थिति वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया था और उसके बाद शर्ते पूरी न करने के चलते मेडिकल कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी गई थी लेकिन उनके बैच में पढ़ाई नहीं हो पा रही है और कॉलेज प्रबंधन उनकी मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है जबकि प्रति विद्यार्थी 30 से 35 लाख रुपए शुल्क व फीस के रूप में कॉलेज प्रबंधन को दे चुके हैं।
झज्जर के श्रीराम शर्मा पार्क में धरना व प्रदर्शन के जरिए सरकार को चेताने का प्रयास करते रहे हैं और दिल्ली में प्रदर्शन किए जाने के बावजूद मेडिकल छात्रों को भविष्य को लेकर अभी कोई हल सरकार व प्रशासन से निकलता नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज विद्यार्थियों ने रोष प्रदर्शन को आगे बढ़ाते हुए खुद को बेरोजगारों की श्रेणी में दर्शाने के मकसद से झज्जर के श्रीराम शर्मा पार्क से झज्जर बस अड्डे तक विरोध प्रदर्शन किया और बस अड्डा परिसर में यात्रियों के जूते पॉलिश किए। साथ ही बसों में पानी, कोल्ड ड्रिंक व कुरकुरे आदि बेचे।
बता दें कि कॉलेज में सुविधाएं मुहैया न कराए जाने को लेकर गांव गिरावड़ स्थित मैडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राएं आंदोलन कर रहे हैं लेकिन उनकी समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो पा रहा है जबकि अब तो हद यह हो गई है कि कॉलेज प्रबन्धन ने ही उन्हें कॉलेज में न घुसने देने को लेकर कॉलेज के मुख्य गेट तक बंद कर डाले हैं।
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