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भ्रष्ट अफसरों से मिल मटियामहल की जमीन खा गए भूमाफिया, जांच के नाम पर सिर्फ हुआ ड्रामा-पाराशर 

Matia-Mahal-Ballabgarh
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फरीदाबाद: शहर के कुछ विभाग के भ्रष्ट अधिकारी जनता को जमकर बेवकूफ बनाते हैं। उनके भ्रष्टाचार की कोई पोल खोलने पर वो बड़े-बड़े ड्रामे करते हैं। ये कहना है बार असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एलएन पाराशर का जिन्होंने कहा कि काफी समय पहले मैंने आवाज उठाई थी कि बल्लबगढ़ के ऐतिहासिक मटियामहल की जमीन पर  शहर के कुछ भू-माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों से मिलकर वहां अवैध निर्माण कर लिया था और अब तक ऐसे लोगों को कोई कार्यवाही नहीं की गई। 
एडवोकेट पाराशर ने कहा कि बल्लभगढ़ के अंबेडकर चौक के पास स्थित बेशकीमती मटिया महल की जमीन पर भूमािफ याओं द्वारा खडी की गई मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के मामले को प्रशासन के समक्ष लगातार उठाए जाने के बाद  बल्लभगढ़ के एसडीएम त्रिलोकचंद ने मौके  का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया था । इस दौरान उन्होंने इस पूरी जमीन की विडियोग्राफी भी कराई थी । एसडीएम ने इस जमीन की जांच के लिए तहसीलदार व पटवारी को आदेश दे दिए थे लेकिन जाँच आगे नहीं बढ़ी। उन समय अधिकारियों ने कहा था कि लोकसभा चुनाव के कारण वो व्यस्त हैं। अब लोकसभा चुनाव के 6 महीने बाद भी अधिकारी खामोश हैं। लगता है माफियाओं ने अधिकारियों के मुँह में नोटों की गड्डियां ठूंस उनका मुँह बंद कर दिया है। 

पाराशर ने बताया कि उन्हें पता चला था कि अंबेडकर चौक के पास मटिया महल प्राचीन काल से बना हुआ था। इसकी करीब 800 वर्गगज जगह खाली पड़ी हुई थी। बीजेपी सरकार आने के बाद नेताओं ने इस जमीन को कब्जाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते मिलीभगत से यहां 550 वर्गगज पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग खड़ी हो गई। जबकि यह जमीन सरकारी थी। समय-समय पर इसकी कंप्लेंट की गई लेकिन अधिकरियों ने मिलीभगत होने के चलते कार्रवाई नहीं की। आज इस जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ रुपए से भी अधिक है। पाराशर का कहना है कि मटिया महल का मुद्दा नगर निगम सदन में भी कई बार उठ चुका है। सदन ने इस जमीन के दस्तावेज देख हैरानी भी जताई थी और इस मामले की जांच विजिलेंस से कराने को लेकर प्रस्ताव पास हो गया था। इसके बाद आज तक भी इसकी जांच शुरू नहीं हो सकी। इस मामले में बड़े स्तर पर गोलमाल हुआ है। यही कारण है कि निगम अधिकारी इसकी जांच भी नहीं कराते। यदि इस जमीन का सही रिकॉर्ड देखना है तो एसडीएम महोदय राजस्व रिकॉर्ड, फील्ड बुक , मसाबी , सिजरा व अक्ष में देखे। इनमें यह जमीन आज भी सरकार के नाम पर है। किंतु बडे ही हैरानी की बात है कि जमीन का सारा रिकॉर्ड सरकार के नाम पर होने के बावजूद भी नगर
निगम द्वारा इस जमीन का नक्शा पास कर दिया गया।

 पाराशर का कहना है कि इस जमीन की भूमाफियाओं ने तहसील से भारी घपला कर रजिस्ट्री कराई है। उनके हाथ मटिया महल की इस 786 गज जमीन की रजिस्ट्री भी लगी है। इस रजिस्ट्री को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि रजिस्ट्री कोर्ट केस चलने के दौरान ही कर दी गई। जबकि कोर्ट ने प्रदूमन सिंह को मालिक बाद में माना किंतु जमीन की रजिस्ट्री उससे पहले ही उसने निहाल सिंह के नाम कर दी थी। सबसे बडी बात इसमें यह है कि कोर्ट में प्रदूमन आदि का केस इस खसरा न. 195 के साथ लगते खसरा नम्बर 118 का चल रहा था। जिसमें कोर्ट ने खसरा न. 118 का फैसला प्रदूमन सिंह के हक में दिया किंतु उस फैसले की आड में प्रदूमन सिंह ने खसरा नं. 195 की 786 गज जगह जिसमें ऐतिहासिक मटियामहल खडा था,उसे भी बेच दिया।
पाराशर ने कहा कि मटियामहल जमीन के मामले में जितने दोषी भूमाफिया हैं उतने ही अधिकारी और सबने मिलकर ऐतिहासिक जमीन हड़पने का काम किया है 
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