फरीदाबाद: रांची की अदालत के उस फैसले को देश के तमाम वकील गलत बता रहे हैं जिसमे जज मनीष कुमार सिंह ने ऋचा भारती नाम की एक युवती को पांच कुरान बांटने के आदेश दिए थे। सबसे पहले रांची बार एसोशिएशन ने इस फैसले का विरोध किया उसके बाद देश के कई राज्यों में फैसले का विरोध शुरू हो गया। बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एलएन एन पाराशर ने कहा कि इस तरह की जमानत की शर्त नहीं लगाई जा सकती है। अगर मामला जमानती हो तो मैजिस्ट्रेट सिर्फ बेल बॉन्ड भरवाकर जमानत देता है। अगर मामला गैर जमानती हो और तब जमानत दी जा रही हो तो फिर मैजिस्ट्रेट को सीआरपीसी के प्रावधान के हिसाब से ही शर्त लगानी होती है। मसलन जमानत पर छूटने के बाद आरोपी शिकायती को धमकी नहीं देगा या उससे संपर्क की कोशिश नहीं करेगा, गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा, सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा। कोर्ट को बिना बताए शहर या देश नहीं छोड़ेगा आदि लेकिन कुरान बांटने की शर्त सीआरपीसी के प्रावधान के बाहर की बात है।
एडवोकेट पाराशर ने कहा कि फैसला हैरान कर देने वाला है और ऐसे फैसले से देश में सामाजिक माहौल और बिगड़ सकता है। पाराशर ने कहा कि किसी को किसी समुदाय के बारे में लिखने का कोई हक़ नहीं है लेकिन वर्तमान समय में सोशल मीडिया पर एक दो नहीं हजारों लोग ऐसा लिखते हैं और अगर जिस तरह ऋचा भारती को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया उसी तरह और गिरफ्तारियां होने लगीं तो देश में जेलें कम पड़ जाएंगी। पाराशर ने कहा की उनकी संस्था इस फैसले का विरोध करती है और मांग करती है कि ऐसा फैसला सुनाने वाले जज को निलंबित किया जाए। इस मौके पर एडवोकेट विश्वेन्द्र अत्री, एडवोकेट एनएस मान, एडवोकेट संजीव सिंह, एडवोकेट कैलाश वशिष्ठ, एडवोकेट बीड़ी कौशिक आदि मौजूद थे।
आपको बता दें कि रांची की 19 वर्षीय छात्रा ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर किया था। पोस्ट में धर्म विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप था। इसी मामले में उन पर मामला दर्ज कर उन्हें तीन दिन के लिए जेल भेज दिया गया। सोमवार को छात्रा ऋचा पटेल को कोर्ट ने जमानत दी और शर्त रखी कि उन्हें कुरान की पांच कॉपी बांटनी होगी। इसी फैसले का देश भर में विरोध हो रहा है।
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