नई दिल्ली: हम अक्सर सुनते और पढ़ते हैं कि हत्या के मामले में अदालत ने आईपीसी यानी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत मुजरिम को हत्या का दोषी पाया है तो ऐसे में दोषी को सज़ा-ए-मौत या फिर उम्रकैद की सजा दी जाती है।
आईपीसी की धारा 302 कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है। कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है। अगर किसी पर हत्या का दोष साबित हो जाता है, तो उसे उम्रकैद या फांसी की सजा और जुर्माना हो सकता है।हाल में कई राज्यों की सरकारों ने एलान किया कि मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को भी फांसी पर चढ़ाया जाएगा।
देश के एक बहुचर्चित केस में आज सजा सुनाई गई। कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस के दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली जबकि कहा जा रहा था कि यहाँ मर्डर और गैंगरेप वो भी मासूम बच्ची के साथ हुआ था। ऐसे में दोषियों को फांसी दी जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
रोजाना देश में मासूम बच्चियां हवस का शिकार बन रहीं हैं वो किसी भी धर्म के लोगों की बच्चियां हों। ऐसी हैवानियत के बाद मासूम बच्चियों की मौत भी हो जाती है लेकिन देश में अब तक शायद ही किसी शैतान को फांसी की सजा मिली हो।
फरीदाबाद के मशहूर वकील एलएन पाराशर अपराध के मामले ज्यादा डील करते हैं उनका कहना है कि जब तक बच्चियों के साथ हैवानियत और उनका मर्डर करने वालों को फांसी पर नहीं चढ़ाया जाएगा तब तक ऐसे अपराध जारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि समय बदल चुका है और अब हर रोज किसी न किसी बच्ची के मर्डर की खबर आती है। उसके साथ दुष्कर्म की खबर आती है लेकिन कोई खबर ऐसी नहीं आती है कि ऐसे अपराध करने वालों को फांसी पर चढ़ा दिया गया हो।
पाराशर ने कहा कि जब तक ऐसी खबरें नहीं आएंगी कि आज फला केस में फला बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वाले को फांसी पर लटकाया गया तब तक ऐसी हैवानियत करने वालों के हौसले बुलंद रहेंगे। पाराशर ने कहा कि समय के साथ दंड प्रक्रिया में बदलाव बहुत जरूरी है और अगर दो चार मामले में आरोपियों को फांसी पर लटका दिया जायेगा तो ऐसे अपराध कम हो जाएंगे।
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