कुरुक्षेत्र राकेश शर्मा: आधुनिक युग मे हाथ के दस्तकारो की जगह अब मशीनरी ने ले ली और जो हाथ के दस्तकार थे आज वो रोटी, कपडा, और मकान के मोहताज हो गए समाज का एक हिस्सा जिसके पास ना तो अपना मकान है ,ना खाने के लिए रोटी, और तन पर वही पुरानी पोशाक जो हम अक्सर देखते है , बात हो रही है बागड़ी समुदाय की जिनका कोई भी ठिकाना नहीं है एक स्थान के दूसरे स्थान पर दो जून की रोटी के लिए मोहताज़ हो गया है।
बागड़ी नरेश कुमार व मुकेश कुमार ने बताया की हमारे पूर्वज गावों गावों जाकर बैल बेचने का काम करते थे तब गावों मे खेत जोतने का काम बैल के द्वारा ही किया जाता था लेकिन आधुनिक युग मे बैल की जगह भी ट्रैक्टर ने ले ली है यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों मे हाथ से सामान का कोई खरीददार नहीं रहा , पहले सामान को बेच कर अपने व् अपने परिवार का गुजरा चला लेते थे ग्रामीण क्षेत्रों मे उनके समान की जरुरत भी देखी जाती थी और जब गलियों मे आवाज लगाई जाती थी तो कोई ना कोई खरीदार मिल ही जाता था।
बागड़ी के द्वारा छाज जिससे अनाज की सफाई की जाती थी , सीपी का प्रयोग हांड़ी से मखन को खरोचने के लिए प्रयोग मे किया जाता था , और फुकनी से चूल्हे मे आग को बालने के लिए प्रयोग करते थे , दांतडे से जहां सरसो के साग को काटा जाता था वही पशुओ के लिए खुरियो का प्रयोग किया जाता था ताकि उनके पैरो को पक्की जगह से बचाया जा सके, लेकिन समय बदला तो सब कुछ बदलता चला गया। नरेश कुमार बताते है की सरक़ार कोई भी लेकिन उनकी सुध कोई भी नहीं लेता जैसे जैसे मशीनरी का चलन बढ़ता चला गया वैसे वैसे उनके हाथ की कला गुम होती चली गई। रहने को मकान नहीं बांस के चार डंडो पर लगी तरपाल वो भी जब तेज आंधी आती उड़ा ले जाती है हमारा मकान , पहनने को तन पर कपडा नहीं , स्कूल की और टकटकी लगाते उनके बच्चे , ना जाने कितने सवाल जो उन्होने हम से पूछ लिए. जिसका जवाब हमारे पास नहीं था।
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