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ऐतिहासिक मटियामहल को मटियामेट कर महल बनाने वालों के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे पाराशर

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फरीदाबाद: भूमाफियाओं की भेंट चढ चुके बल्लभगढ़ के ऐतिहासिक मटिया महल के मामले में प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एल.एन.पाराशर ने हाईकोर्ट मे जनहित याचिका दायर कर दी हैै। जिला उपायुक्त को करीब एक सप्तह पूर्व ज्ञापन दिए जाने के बाद भी  कोई कार्रवाई न होने पर पाराशर ने अदालत की शरण ली है। इस मामले में एक और सनसनीखेज खुलासा करते हुए पाराशर ने बताया कि वर्ष 2004 में प्रदुमन सिंह द्वारा मटिया महल गिराने पर तत्कालीन एसडीएम के आदेश पर तहसीलदार ने प्रदुमन के खिलाफ सिटी थाना बल्लभगढ़ में एफ. आई. आर. भी दर्ज कराई थी। इस एफ.आई. आर की कापी बडे प्रयासों के बाद उनके हाथ लगी है। पाराशर का कहना है कि ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब यह जमीन सरकारी थी तभी महल गिराने वाले के खिलाफ एफ.आई. आर दर्ज कराई गई। फिर एकाएक यह जमीन कैसे निजी संपत्ति हो गई। जोकि नगर निगमद्वारा इसका रेजिडेंशियल नक्शा भी पास कर दिया गया और भूमाफियाओं ने यहां बहुमंजिला इमारत खडी कर ली। वहीं तहसील कार्यालय के कर्मचारी भी इस घपले में शामिल रहे। 


उनका कहना है कि महल गिराया गया वर्ष 2004 में और इससे पहले ही इस मटिया महल के खसरा न. 195 की जगह की रजिस्ट्री वर्ष 2003 में ही मिलीभगत से कर दी गई। पाराशर का कहना है कि उनके हाथ काफी सबूत लग चुके है जोकि यह साबित करते हैं कि यह जमीन सरकारी है। उन्होंने बताया कि मटिया महल तोडे जाने के बाद तत्कालीन जिला उपायुक्त ने इस जमीन पर बकायदा सरकारी भूमि होने का बोर्ड लगाया था। जोकि सबसे बडा प्रूफ है। दूसरा सबूत मटिया महल तोडे जाने वाले के खिलाफ एफ.आई. आर दर्ज होना और तीसरा आज भी राजस्व रिकॉर्ड की जमाबंदी में यह जमीन सरकार के नाम पर होना। इस बात के सबूत हैं कि यह जमीन सरकारी है और मिलीभगत से इसे भूमाफियाओं ने हथिया लिया है। पाराशर का कहना है कि जिन जिन लोगों के नाम इस खसरा न. 195 की 786 गज जगह कीरजिस्ट्री हुई हैं। उन सभी की रजिस्ट्री अदालत से वह कैंसिंल कराऐंगे और बहुमंजिला इमारत को धराशायी करा कर ही दम लेंगे। उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट मे दायर जनहित याचिका के डायरी नं. 2490122 मे कमिश्नर नगर निगम,चीफ सेक्रेटरी हरियाणा तथा पुरातत्व विभाग हरियाणा सहित अन्य को पार्टी बनाया है।

गौरतलब है कि राजा बलराम उर्फ बल्लू ने अपने नाम पर बल्लभगढ़ रियासत की आधारशीला रखी थी। उनकी मौत के बाद राजा किशन सिंह, अजित सिंह व बहादुर सिंह ने बल्लभगढ़ पर राज किया। 20 जनवरी 1939 को राजा नाहर सिंह को बल्लभगढ़ रियासत की बागडोर सौंपी गई। अपने शासन काल के दौरान राजा नाहर सिंह ने अपनी रानी के लिए एक महल बनवाया था। इस महल में सिविल अस्पताल स्थित रानी की छतरी, तिगांव रोड पर स्थित मटिया महल और 100 फुट रोड पर स्थित महल का दरवाजा व कुंआ शामिल था।  9 नवम्बर 1858 को राजा नाहर सिंह को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। उनकी मौत के बाद अंग्रेजों ने बल्लभगढ़ रियासत को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया था। उस दौरान करीब 5 किलोमीटर के दायरे में बने महल परिसर के कई हिस्सों को अंग्रेजों ने नीलाम कर दिया था। उसी दौरान राजा नाहर सिंह के दामाद फरीद कोट राजा हरेन्द्र सिंह ने इस जमीन को अंग्रेजों से खरीद लिया था। देश की आजादी के बाद इस पर सरकार का कब्जा हो गया था। लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते इस महल की जमीन पर कुछ लोगों ने कब्जा कर मटिया महल को गिरा दिया था।

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