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बल्लबगढ़ के ऐतिहासिक मटियामहल को मटियामेट कर माफियाओं ने करवाई फर्जी रजिस्ट्री: पाराशर

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बल्लभगढ़: बल्लभगढ़ के अंबेडकर चौक के पास मटिया महल की करोड़ों रुपए कीमत की जमीन पर भूमािफ याओं द्वारा खडी की गई मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के मामले में न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एल. एन. पाराशर ने एक और सनसनीखेज खुलासा किया है। पाराशर ने बताया कि इस जमीन की भूमाफियाओं ने तहसील से भारी घपला कर रजिस्ट्री कराई है। उनके हाथ मटिया महल की इस 786 गज जमीन की रजिस्ट्री लगी है। इस रजिस्ट्री को ध्यान से देखने पर पता चला कि रजिस्ट्री कोर्ट केस चलने के दौरान ही कर दी गई। जबकि कोर्ट ने प्रदूमन सिंह को मालिक बाद में माना किंतु जमीन की रजिस्ट्री उससे पहले ही उसने निहाल सिंह के नाम कर दी थी। सबसे बडी बात इसमें यह है कि कोर्ट में प्रदूमन आदि का केस इस खसरा न. 195 के साथ लगते खसरा नम्बर 118 का चल रहा था। जिसमें कोर्ट ने खसरा न. 118 का फैसला प्रदूमन सिंह के हक में दिया किंतु उस फैसले की आड में प्रदूमन सिंह ने खसरा नं. 195 की 786 गज जगह जिसमें ऐतिहासिक मटियामहल खडा था,उसे भी बेच दिया। पाराशर का कहना है कि इसके बाद इस जमीन की कई और लोगों के नाम भी रजिस्ट्री हुई है। इस सबका रिकॉर्ड उन्होंने निकलवा लिया है। पाराशर ने बताया कि इस ऐतिहासिक धरोहर को सत्ताधरी संरक्षित भूमाफियाओं के हाथों में जाने से रोकने के लिए उन्होंने  हाईकोर्ट में भी अपील की हुई है। जल्द ही इस मामलें में हाईकोर्ट से उन अधिकारियों को नोटिस जारी होंगे, जिन्हें इसमें पार्टी बनाया गया है। 

पाराशर ने कहा कि अब वह इन फर्जी रजिस्ट्रीयों की भी जांच कराकर उन्हें कैंसिल कराऐंगे। बेशक इसके लिए उन्हें कोर्ट की शरण ही क्यों न लेनी पडे। कोर्ट में वह इन रजिस्ट्रीयों को जल्द ही चैलेंज करेंगे। उनका कहना है कि बडे ही शर्म की बात है कि प्रशासन इस मामले में बिल्कुल गूंगा व बहरा बना बैठा है। निगम कमिश्रर अनीता यादव से उन्हें बहुत उम्मीद थी कि वह इस मामले में संज्ञान जरूर लेंगी किंतु उन्होंने भी अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया। राजस्व रिकॉर्ड में भी स्पष्ट तौर पर यह जमीन हरियाणा सरकार के नाम पर दर्ज है। पाराशर ने बताया कि उन्हें पता चला है कि अंबेडकर चौक के पास मटिया महल प्राचीन काल से बना हुआ था। इसकी करीब हजार वर्गगज जगह खाली पड़ी हुई थी। बीजेपी सरकार आने के बाद नेताओं ने इस जमीन को कब्जाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते मिलीभगत से यहां 550 वर्गगज पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग खड़ी हो गई। जबकि यह जमीन सरकारी थी। समय-समय पर इसकी कंप्लेंट की गई लेकिन अधिकािरयों ने मिलीभगत होने के चलते कार्रवाई नहीं की। आज इस जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ रुपए से भी अधिक है। नहीं शुरू हुई विजिलेंस जांच: पाराशर ने बताया कि मटिया महल का मुद्दा नगर निगम सदन में स्थानीय पार्षद दीपक चौधरी ने भी कई बार उठाया था। सदन ने उनके दस्तावेज देख हैरानी भी जताई थी और इस मामले की जांच विजिलेंस से कराने को लेकर प्रस्ताव पास हो गया था। इसके बाद आज तक भी इसकी जांच शुरू नहीं हो सकी। इस मामले में बड़े स्तर पर गोलमाल हुआ है। यही कारण है कि निगम अधिकारी इसकी जांच भी नहीं कराते। 

कब्जाधारी पार्टी में अहम पद के नेता : एडवोकेट एल.एन. पाराशर ने आरोप लगाया कि इस जमीन पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनाने वाले बीजेपी नेता पार्टी में अहम पद पर है। वहीं इसमें शराब का एक बहुत बडा ठेकेदार भी पार्टनर है जिसका मंत्रियों के साथ उठना बैठना है। 2015 में बीजेपी सरकार बनने के साथ ही इस नेता व शराब ठेकेदार ने मटिया महल की जमीन पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनाने का काम शुरू कर दिया था। पुलिस व नगर निगम उक्त लोगो की पहुंच के सामने बौना साबित हो रहे हैं। यही कारण है कि आज सरकारी जमीन पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग खड़ी है। यदि इस मामले की सही प्रकार से जांच की जाए तो घपले की जांच मंत्रियों तक पहुंच सकती है।
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