बल्लभगढ़: ऐतिहासिक शहर बल्लभगढ़ की ऐतिहासिक धरोहरों पर भू माफियाओं द्वारा किए जा
रहे अवैध कब्जों के खिलाफ बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक
सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एल.एन. पाराशर जल्द ही हाई कोर्ट
में रिट दायर करेंगे। तिगांव रोड पर राजा नाहर सिंह द्वारा बनाये गए
मटिया महल की खसरा नंबर 195 की 786 गज जगह पर भूमाफियओं द्वारा किए गए
कब्जे के मामले में प्रशासन द्वारा अभी तक कोई कार्रवाई न किए जाने से
नाराज एडवोकेट पाराशर ने कहा कि सरकारी राजस्व रिकॉर्ड में यह जमीन सरकार
के नाम चढी हुई है बावजूद इसके इस भूमि पर प्रशासनिक अधिकारियों ने
भूमाफियाओं से मिलीभगत करके इस पर बहुमंजिला इमारत खडी कर ली है।
उन्होंने कहा कि उन्हें पता चला है इस जमीन पर इमारत बनाने में एक शराब
के बहुत बडे ठेकेदार ने अपनी प्रशासनिक अधिकारियों में पहुंच के चलते
इसका नक्शा पास करा लिया। जबकि इस खसरा नंबर 195 में स्थित मटिया महल की
786 गज जगह पर पहले प्रशासन ने सरकारी भूमि होने का सार्वजनिक बोर्ड
लगाया था। और फिर कुछ समय बाद ही नगर निगम ने इस जमीन का रेजिडेंशियल
नक्शा पास कर शराब के इस बडे ठेकेदार को बहुमंजिला इमारत बनाने की परमिशन
दे दी। पाराशर ने कहा कि वह किसी भी सूरत में इस ऐतिहासिक सरकारी जमीन को
भूमाफियओं के हाथ में नहीं जाने देंगे। इसके लिए वह जिला उपायुक्त को
ज्ञापन भी देचुके हैं। यदि दो दिन के भीतर इस पर प्रशासन ने कोई कार्रवाई
नहीं की तो वह इस मामले को हाईकोर्ट में लेकर जाऐंगे। और जिन जिन लोगों
ने मिलीभगत कर इस सरकारी जमीन की रजिस्ट्री कराई है, उनकी रजिस्ट्री
कैंसिल कराकर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कराऐंगे।
गौरतलब है कि राजा बलराम उर्फ बल्लू ने अपने नाम पर बल्लभगढ़ रियासत की
आधारशीला रखी थी। उनकी मौत के बाद राजा किशन सिंह, अजित सिंह व बहादुर
सिंह ने बल्लभगढ़ पर राज किया। 20 जनवरी 1939 को राजा नाहर सिंह को
बल्लभगढ़ रियासत की बागडोर सौंपी गई। अपने शासन काल के दौरान राजा नाहर
सिंह ने अपनी रानी के लिए एक महल बनवाया था। इस महल में सिविल अस्पताल
स्थित रानी की छतरी, तिगांव रोड पर स्थित मटिया महल और 100 फुट रोड पर
स्थित महल का दरवाजा व कुंआ शामिल था। 9 नवम्बर 1858 को राजा नाहर सिंह
को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। उनकी मौत के बाद अंग्रेजों ने
बल्लभगढ़ रियासत को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया था। उस दौरान करीब 5
किलोमीटर के दायरे में बने महल परिसर के कई हिस्सों को अंग्रेजों ने
नीलाम कर दिया था। उसी दौरान राजा नाहर सिंह के दामाद फरीद कोट राजा
हरेन्द्र सिंह ने इस जमीन को अंग्रेजों से खरीद लिया था। देश की आजादी के
बाद इस पर सरकार का कब्जा हो गया था। लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते
इस महल की जमीन पर कुछ लोगों ने कब्जा कर मटिया महल को गिरा दिया था।
लोगों के विरोध पर प्रशासन जागा और तत्कालीन तहसीलदार ने 23 अक्टूवर
2003 को पटवारी से इस जमीन की पैमाइश करवाई। जमीन करीब 786 गज थी। इस
जमीन का बाजार भाव आज करोडोंं रुपये है।
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