फरीदाबाद: बल्लबगढ़ में किस तरह सरकारी जमीनों की लूट मची है इस बारे चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एल एन पाराशर ने बल्लभगढ तहसील व नगर निगम बल्लभगढ का एक ओर काला कारनामा उजागर किया है। मटिया महल की सरकारी 786 गज जमीन की भी तहसील कर्मचारियों ने भूमाफियों से मिलीभगत कर रजिस्ट्री कर दी। जबकि मटिया महल के खसरा नं. 195 की यह 786 गज जगह आज भी राजस्व रिकॉर्ड मे मालिकाना कालम में प्रोवेंशियल गर्वनमेंट के नाम पर व काश्तकार कालम में हरिन्द्र सिंह के नाम पर है। एडवोकेट पराशर ने कहा कि मैंने 27 मार्च को बल्लबगढ़ तहसील से कागजात निकलवाए तो मैं हैरान रह गया। आज भी ये जमीन सरकार के नाम से है।
एल एन पाराशर का कहना है कि ऐतिहासिक शहर बल्लभगढ़ की ऐतिहासिक धरोहरों पर अब भू माफियाओं के कब्जे है। तिगांव रोड पर राजा नाहर सिंह द्वारा बनाया गया मटिया महल हो ,रानी की छतरी के आस पास की जगह हो या 100 फुट रोड पर ऐतिहासिक कुंआ हो। इन सभी धरोहरों को भूमाफियाओं ने धराशयी कर अब बहुमंजिला इमारते खडी कर ली है। खसरा नंबर 195 में स्थित मटिया महल की 786 गज जगह पर पहले प्रशासन सरकारी भूमि होने क सार्वजनिक बोर्ड लगाता है और फिर कुछ समय बाद ही नगर निगम इस जमीन का रेजिडेंशियल नक्शा पास कर भूमाफियाओं को बहुमंजिला इमारत बनाने की परमिशन दे देता है। इस ऐतिहसिक धरोहर पर कब्जा कराने में सत्ताधारी नेताओं के साथ साथ नगर निगम व तहसील कार्यालय के अधिकारी भी शामिल हैं। वकील पाराशर ने कहा ये अरबों का घोटाला है और मैंने माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री हरियाणा मनोहर लाल के पास पत्र लिख रहा हूँ और इस बड़े घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग कर रहा हूँ।
क्या है मटिया महल का इतिहास:
राजा बलराम उर्फ बल्लू ने अपने नाम पर बल्लभगढ़ रियासत की आधारशीला रखी थी। उनकी मौत के बाद राजा किशन सिंह, अजित सिंह व बहादुर सिंह ने बल्लभगढ़ पर राज किया। 20 जनवरी 1939 को राजा नाहर सिंह को बल्लभगढ़ रियासत की बागडोर सौंपी गई। अपने शासन काल के दौरान राजा नाहर सिंह ने अपनी रानी के लिए एक महल बनवाया था। इस महल में सिविल अस्पताल स्थित रानी की छतरी, तिगांव रोड पर स्थित मटिया महल और 100 फुट रोड पर स्थित महल का दरवाजा व कुंआ शामिल था। कल्पना चावला सिटी पार्क बचाओं संघर्ष समिति के अध्यक्ष सेवा राम वर्मा ने बताया कि 9 नवम्बर 1858 को राजा नाहर सिंह को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। उनकी मौत के बाद अंग्रेजों ने बल्लभगढ़ रियासत को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया था। उस दौरान करीब 5 किलोमीटर के दायरे में बने महल परिसर के कई हिस्सों को अंग्रेजों ने निलाम कर दिया। राजा नाहर सिंह के शहीद हो जाने के बाद अंग्रेजों ने उनकी ज्यादातर सम्पत्ति को बेच दिया था। उसी दौरान राजा नाहर सिंह के दामाद फरीद कोट राजा हरेन्द्र सिंह ने इस जमीन को अंग्रेजों से खरीद लिया था। देश की आजादी के बाद इस पर सरकार का कब्जा हो गया था। महल की जमीन पर कब्जा होते देख लोगों ने इसका विरोध किया। लोगों के विरोध पर प्रशासन जागा और तत्कालीन तहसीलदार ने 23 अक्टूवर 2003 को पटवारी से इस जमीन की पैमाइश करवाई। जमीन करीब 786 गज थी। इस जमीन का बाजार भाव आज करोडोंं रुपये है। लेकिन मजे की बात यह है कि पैमाईश से कुछ समय पहले ही यहां रहने वाले प्रदुमन उर्फ पदम ने तसहील से इस जमीन की रजिस्ट्री दो लोगों के नाम करवा दी थी। बाद में उक्त दोनों लोगों ने अन्य लोगों के नाम इस जमीन की रजिस्ट्री करवा दी। इस तरह से इस जमीन की कई बार रजिस्ट्री हो चुकी है।
इसके बाद प्रदुमन ने वर्ष 2004 में जालसाजी कर किसी तरह अदालत से आदेश प्राप्त कर लिए और ऐतिहासिक धरोहर मटिया महल को हमेश हमेश के लिए मिटा दिया। बाद में जब इस का भारी विरोध हुआ तो प्रशासनिक अधिकारियों ने मामले की जांच के बाद बताया था कि अदालत के आदेश लाल डोरा की जमीन खसरा न. 118 के लिए थे न कि खसरा न. 195 की इस 786 गज जगह के थे। । उस समय प्रदुमन समेत कई लोगों के खिलाफ पीपी एक्ट के तहत मामले भी दर्ज करवाए गए थे। जमीन पर सरकार ने अपना कब्जा ले कर सरकारी भूमि होने का बोर्ड भी लगाया था किंतु इस सब के बाद भी जिला प्रशासन इस मामले में आज तक लापरवाही बरत रहा है।
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