फरीदाबाद, 11 मई। वरूण श्योकंद ने 155 कर्मचारियों की भर्ती से जुड़े एक घोटाले का पर्दाफाश करते हुए इस घोटाले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो या वरिष्ठ ईमानदार व विशेष अधिकारियों का एक विशेष जांच दल से करवाने की मांग की है। उन्होंने इस सारे मामले का खुलासा करते हुए एक विस्तृत शिकायत पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय, राज्य के मुख्यमंत्री, शहरी स्थानीय निकाय मंत्री, मुख्य सचिव और विभाग के आला अधिकारियों को प्रेषित की है। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय को प्रेषित पत्र में उन्होंने इस घोटाले में शहरी स्थानीय निकाय विभाग व फरीदाबाद नगर निगम के अधिकारियों, कुछ राजनीतिज्ञों व श्रम न्यायालय के अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप लगाते हुए इस शिकायत को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार करने का अनुरोध भी किया है।
श्री वरूण श्योकंद ने आज यहां जारी एक प्रैस विज्ञप्ति में बताया कि नगर निगम के पास 117 व्यक्तियों की आयु, शैक्षणिक योग्यता, रिहायशी पता, वेतन देने, उपस्थिति रिकार्ड, कब डयूटी ज्वाईन की और कब नौकरी से हटाया और लोग बुक आदि का रिकार्ड न होने के बावजूद निगम के एक सेवानिवृत अधिकारी प्रताप सिंह के द्वारा दिये गये ब्यान के आधार पर श्रम न्यायालय के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते इन 117 व्यक्तियों के पक्ष में अवार्ड सुना दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि निगम प्रशासन की इस मामले में बरती गई उदासीनता के चलते ही उच्च न्यायालय में भी श्रम न्यायालय का निर्णय बरकरार रखा गया, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे 117 व्यक्तियों का निगम में नियुक्त होने का रास्ता प्रशस्त हो गया है, जिनका निगम में किसी भी प्रकार का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है।
उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के द्वारा 2 सितम्बर 2016 को नियमितकरण नीतियों पर जारी किये गये स्टे आर्डर व राज्य के मुख्य सचिव के द्वारा 15.9.2016 को किसी भी कर्मचारी को नियमित न किये जाने के दिये गये आदेशों के बावजूद इतने गम्भीर व संदेहास्पद और करोड़ों रूपये के खर्चे वाले की गहराई में जाए बिना शहरी स्थानीय निकाय मंत्री व विभाग के आला अधिकारियों ने आनन-फानन में न्यायालय की अवमानना में उक्त 117 कर्मियों सहित 155 कर्मियों को 1.102.003 से नियमित नियुक्ति प्रदान करने के आदेश नगर निगम फरीदाबाद को 17 फरवरी को जारी कर दिये, जबकि श्रम न्यायालय ने 155 की बजाए केवल 117 कर्मियों को दैनिक वेतनमान में ही बहाल करने के आदेश निगम को दिए हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि तमाम विरोध व शिकायतों के बावजूद नगर निगम प्रशासन व हरियाणा इस सारे मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाने की बजाए राजनैतिक दबाब व भ्रष्टाचार के चलते उच्च न्यायालय के स्टे आर्डर व मुख्य सचिव के 15 सितम्बर 2016 के आदेशों को धता बताते हुए इन कर्मियों को नियमित नियुक्ति देने में बड़ी जल्दबाजी में है, जबकि इन्हें दैनिक वेतनमान तक पर बहाल करते समय विस्तृत जांच पड़ताल किये जाने की आवश्यकता है।
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