तस्वीर मुख्यमंत्री आज नरवाना की रैली में |
चण्डीगढ़, 18 दिसम्बर- हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने आज कानूनविदों से आह्वान करते हुए कहा कि वे लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करने के साथ-साथ उन्हें उनके कर्तव्यों और जिम्मेवारियों के प्रति जागरूक करें।
मुख्यमंत्री आज चंडीगढ़ में हरियाणा मानवाधिकार आयोग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय राज्य मानवाधिकार आयोग सम्मेलन-2016 में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लोगों को सम्बोंधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जहां तक अधिकारों की बात है, अधिकारों के साथ-साथ हमें अपने कर्तव्य क्या हैं, इसकी भी जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार पाश्चात्य संस्कृति से है और कर्तव्य हमारी भारतीय संस्कृति से अर्थात भारतीय संस्कृति में काम करने, सेवा करने के बारे में बताया गया है। जब हम किसी के लिए काम या उसकी सेवा करेंगे तो हमारे कर्तव्य के साथ-साथ उसका अधिकार भी उसे प्राप्त हो जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन-में कहा गया है कि कर्म को ही अधिकार बताया है, जिसके लिए आप कर्म करेंगे, उसका अधिकार स्वत: ही पूर्ण हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हम व्यक्तिवादी हो रहे हैं और अधिकारों के माध्यम से ही अपने समाज को कहां ले जा रहे हैं, यह विचारणीय है। उन्होंने कहा कि संविधान में मूलभूत अधिकारों के साथ कर्तव्यों को भी बढ़ाने की बात है। उन्होंने सम्मेलन में एक वक्ता द्वारा दिए जा रहे वक्तव्य के दौरान उन्हें गले में तकलीफ हुई, का उदाहरण देते हुए बताया कि उनका अधिकार पानी लेना था, परंतु आसपास के लोगों का कर्तव्य उन्हें पानी पहुंचाना था अर्थात लोगों द्वारा किये गए कर्तव्य से उनका अधिकार स्वत: ही पूर्ण हो गया।
उन्होंने कहा कि हमें अधिकार और कर्तव्य के विरोधाभास के समन्वय को बैठाना है और लोगों को उनके अधिकारों के साथ-साथ उनके कर्तव्यों के बारे में जानकारी भी देनी है। उन्होंने बताया कि कानून के भय से समाज को जीवित रखना सही नहीं है और न ही यह सभ्य समाज की परिभाषा है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में ‘जीओ और जीने दो’ की संज्ञा है अर्थात जीओ से अधिकार प्राप्त करना है और जीने दो यह हमारे कर्तव्य में शामिल है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में हमेशा ही सिखाया गया है, ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ अर्थात सभी को एक समान अधिकार और कर्तव्य करने चाहिए। उन्होंने कहा कि बिना कर्तव्य के किसी का अधिकार पूरा नहीं हो सकता। इसी प्रकार, वसुदेव कुटुम्बकम का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे समाज और संस्कृति में मां-बेटे की भी अपनी एक भूमिका, अधिकार और कर्तव्य हैं, परंतु आजकल अधिकारों की लड़ाई में पति-पत्नी, मां-बेटा, भाई-भाई आपस में लड़ रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मनुष्य को अपने अधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ अपने कर्तव्यों की भी पहचान करनी चाहिए और हमें शिक्षा के साथ-साथ भारतीय सामाजिक संस्कृति की बातों को भी आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब हम सेवा का भाव मन में रखकर आगे बढ़ेंगे तो अपने कर्तव्यों के साथ-साथ दूसरों के अधिकार भी पूर्ण होते चले जाएंगे। उन्होंने स्वयं अपना उदाहरण देते हुए कहा कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और हरियाणा अढ़ाई करोड़ जनता उनका परिवार है और इस रिश्ते के साथ हमें आगे बढऩा होगा, जिससे हमारे कर्तव्यों के साथ-साथ लोगों के अधिकार भी पूर्ण होंगे।
इससे पूर्व, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायामूर्ति साइरिक जोसेफ ने कहा कि मानवाधिकार की सुरक्षा सबसे पहले हमें स्वयं से करनी होगी, यदि हम अपने मातहत कार्य कर रहे कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा नहीं कर सकते तो हमें मानवाधिकार के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। स्वतंत्र रूप से कार्य करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग हमारे कार्य में ज्यादा प्रभावित नहीं है, जो हमें दिया जाता है, परंतु हमें अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखना है लेकिन हमें लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना है अर्थात हमें अपनी सीमाओं में काम करना है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार प्रत्येक मानव के लिए उपलब्ध है, चाहे वह एक समान्य नागरिक हो, एक श्रमिक हो, एक पुलिस कर्मी हो या सुरक्षा अधिकारी हो और किसी ने हमें यह अधिकार नहीं दिया है कि हम उनके अधिकारों का उल्लंघन करें। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हमें पुलिसकर्मियों और सुरक्षा बलों के लिए बोलना चाहिए, जो अन्य लोगों के अधिकारों के लिए अपना जीवन जोखिम में डालते हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग ज्यूडिशरी का विकल्प नहीं हो सकता, परंतु उसका अनुपूरक है। हालांकि इसमें कोई प्रतियोगिता या उपर-नीचे नहीं होना चाहिए, परंतु आपसी सहयोग व समन्वय होना चाहिए, क्योंकि हम सब मानवाधिकार के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि मानवाधिकार आयोग को वैकल्पिक विवाद निवारण फोरम के रूप में भी कार्य करना चाहिए।
महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग के चेयरपर्सन न्यायामूर्ति एस.आर. बानुरमाथ ने कहा कि अब समय आ गया है कि हमें सभी को अब एक साथ खड़ा होना होगा और अपने स्व: केन्द्रित व्यवहार से बाहर निकलना होगा और लोगों के अधिकारों के सरंक्षण के लिए खड़ा होना होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग स्वायत वैधानिक संस्थाएं हैं और यह नागरिकों के मानवाधिकार की सुरक्षा के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करती है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष का विषय ‘स्टेंडअप फोर समवनस राइट टूडे’ है। इस अवसर पर महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग के चेयरपर्सन न्यायामूर्ति एस.आर. बानुरमाथ ने हरियाणा मानवाधिकार आयोग द्वारा शुरू किये गए इस सम्मेलन की प्रशंसा भी की, जिसमें अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
चंडीगढ़ ज्यूडिशियल अकादमी के निदेशक डॉ० बलराम गुप्ता ने न्याय की तीन परिभाषाओं नामत: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यदि हम लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करेंगे तो अन्य लोगों के अधिकार स्वत: ही संरक्षित हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि प्रत्येक समाज में न्याय मूलभूत होता है और इसके बिना कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता है।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के कार्यवाहक चेयरपर्सन न्यायामूर्ति एच.एस.भल्ला ने कहा कि मानवाधिकार आयोग लोगों के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, परंतु यह सुशासन के बिना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार इस वर्ष स्वर्ण जयंती समारोह मना रही है और अखिल भारतीय राज्य मानवाधिकार आयोग सम्मेलन-2016 स्वर्ण जयंती समारोह का ही एक भाग है।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के सदस्य श्री जे.एस. अहलावत ने सम्मेलन में धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया। इस अवसर पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, विभिन्न राज्यों के मानवाधिकार आयोग के कार्यवाहक चेयरपर्सन अधिवक्ता और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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